लघुकथा

टूटी चूड़ियां

गंगा आरती की स्वरलहरी धाराओं को पार कर इस छोड़ से दुसरे छोड़ तक गूँज रही थी ।
जान्हवी देवनदी के तट पर प्रियतम से मिलने सारे बंधनों को तोड़ कर भाग आई थी ।
बंधन ! ना ना ! वह बंधन नहीं सर्वनाश का शिलापट्ट था । जहाँ एक बार अगर जान्हवी अपना सिर झुका लेती तो झुकते-झुकते टूट जाती ।
स्वर्ण आभा से अलंकृत कर उसके लिये दासता की बेड़ियाँ सजाये चंचल उसकी राह देख रहा था।
अनेकानेक प्रलोभन कभी भविष्य का भय दिखा कर कभी वर्तमान में सहानुभूति जताकर जान्हवी को पाना ही चंचल के जीवन का एक मात्र उद्देश्य बन गया था ।
क्योंं ! यह सवाल जान्हवी अपने आप से कर रही थी।

कैसे संभालूँ खुद को , उस महान लंपट से जिसकी नज़र में स्त्री भोग्या के सिवा कुछ नहीं ।
क्या सचमुच स्त्रीदेह भोग एवं विलासिता के साधन मात्र हैं ?
नहीं नहीं भले ही हमारी चूड़ियां टूट गई हैं, उन टूटी चूड़ियों की कसम पुनः चूड़ियां सजेगी ।
श्रृंगार के लिये नहीं बल्कि संहार के लिए ।
अबला का बल उन्हीं टूटी चूड़ियों में समाहित है । चिता की अग्नि पूरी तरह शाँत हो चुकी थी ।अस्थि अवशेष मात्र बचे थे ।
जान्हवी कल जिन्हें उतार कर अभि के मृत शव शय्या पर रखी थी उन्हें ढूँढ ढूँढ कर सहेजने लगी ।

आरती रॉय. फिलीपींस. मनीला.

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com