संस्मरण

अतीत की अनुगूंज – 15 : पफ 

एक मोटी सी, सुन्दर लड़की अपने कुत्ते को टहलाती मेरी नई कक्षा के सामने आ खड़ी हुई। दो मिनट  बाद उसने पीछे मुड़कर जोर से आवाज़ दी, ” एड्रियन ‘.  एड्रियन फिर भी न आया। वह झल्लाई और चिल्लाई, “यू वांट मी टू बॉक्स योर ईयर्स इन फ्रंट ऑफ़ योर न्यू टीचर?” ( तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी नई टीचर के सामने तुम्हारे कान मरोड़ूँ?) तब तक अन्य अभिभावकों की नज़रें भी उस तरफ उठ गईं थीं। एड्रियन सहमा हुआ सा अपनी जगह अड़ा खड़ा रहा। वह पाँव पटकते हुए उस तक गयी और बांह पकड़ कर उसे खींच लाई। क्लास रूम में लगभग उसको धकेलते हुए हिदायत दी, “नाउ बिहेव ओके?” मुझसे कहा, “सॉरी समवन गॉट अप दी रॉन्ग साइड ऑफ़ बेड टुडे।” (माफ़ करना कोई आज पलंग की गलत तरफ उठा है।) उसके कहने का मतलब था कि सुबह से ही वह चिड़-चिड़ा रहा है।

मेरे सामने एक बालक ढीली ढाली पुरानी सी कमीज और स्कूल की पैंट पहने मुंह लटकाये खड़ा था। चेहरे से ही पिटा पिटा सा लग रहा था। बाल भूरे बिना कंघा किये हुए। आँखें भूरी, भैंगी और गीद से भरी हुई ! मैंने सब बच्चों को दरी पर गोला बनाकर सामने बैठने के लिए कहा। यह कक्षा दो थी अतः उसके जाननेवाले वहां थे। पर किसी ने उत्साह से उसको पास नहीं बुलाया। बस सबरीना ने उसे इशारा किया तो वह उसके पास बैठ गया। चेहरे पर मुस्कान आ गयी। इलेन, सहायिका भी आ गयी। आँख के इशारे से उसने एड्रियन पर ध्यान देने के लिए कहा।

अगले चार छह दिनों में ही उसकी कलई खुल गयी। एड्रियन बैठना तो जानता ही ना था। अगर चुप हो भी जाता तो उदासी उसके चेहरे पर जमी मटमैली परत के संग चमकती. कभी कभी उसके गालों पर पिछली रात को नींद में बही लार जमी होती। दांत महकते होते। अजीब रूक्षता। अजीब सतर्कता। अजीब रुआंसा चेहरा। और दिन भर उजड्डता, कोहराम, खेल का मतलब काम बिगाड़ना. खुद कुछ करना नहीं और दूसरों का किया बिगाड़ देना। कितना ही पुचकारो वह उसको उपहास की दृष्टि से हवा में उड़ा देता था। इतनी ढिठाई ! यूं तो ६ बरस के बालक से नाराज़ी कैसी मगर उसकी हरकते इतना समय बर्बाद करती थी कि सब कुछ सोंचा समझा हुआ अधूरा ही रह जाता। उसकी शरारतें अक्सर अन्य बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरनाक होती थीं।  मुझे उस पर बराबर नज़र रखनी होती थी। जैसे वह आर्ट के क्षेत्र में लगा नलका खोल देता था और अन्य बच्चों पर कुल्ला करता। हारकर मैंने एक विस्तृत रिपोर्ट लिखी और लिखित में मांग की कि मुझे उसके लिए विशेष सहायता की जरूरत है।

कुछ  दिनों के बाद उसकी अलग टीचर आ गयी जो उसको अलग लेकर बैठती थी। वह उसके संग खुश था और काम भी करता था मगर प्रशासन में सब बहरे होते हैं। केवल नियम बघारते हैं। एक सीनियर अध्यापिका जी आ टपकीं। बोलीं आप बच्चे को अलग निष्कासित कर रही हैं। शिक्षा में यह “सज़ा ” देना वर्जित है। अतः उसकी एकल शिक्षिका को उसके प्रिय मित्रों को भी संग बैठाना पडेगा . मैंने प्रतिवाद किया की बच्चा तवज्जोह का भूखा है। अपनी शिक्षिका के संग ध्यान से पढ़ता है। पर वह कहने लगी कि मैं उसे पसंद नहीं करती इसलिए अपना बोझ दूसरे के सर मढ़ रही हूँ।

मेरी क्लास में उसका यूं दखल देना नहीं बनता था, मगर “प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं”.  अतः उसके कहने पर एड्रियन अपने परम मित्रों को चुनकर अपनी टेबल पर जा बैठा। वह सभी पढ़ने पर अधिक ध्यान देने लगे और एड्रियन वापिस अपनी हरकतें करने लगा। वही कोहराम फिर से शुरू। उनके अभिभावकों की शिकायतों का उत्तर मुझे देना पड़ता था। रोज उसके संग काम करनेवाले बच्चे बदल बदलकर बैठाने पड़ते। जैसे तैसे निभाती गयी।
एक दिन वह स्कूल नहीं आया। उसका बड़ा भाई भी अनुपस्थित था। हफ्ते के बाद उसके घर नोटिस भेजा गया। मगर उत्तर नहीं आया। स्कूल में स्टाफ मीटिंग के बाद देर से घर जा रही थी। एड्रियन दो हफ्ते से गायब था। देखा शाम को छै बजे उसका बड़ा भाई जेसन बड़ा सा झोला लिए कहीं जा रहा था। अगले दिन प्रधान अध्यापिका को मैंने सूचना दी। तुरंत एक समाज सेवा कार्यालय की अफसर उनके घर भेजी गयी। एड्रियन की माँ को तीसरा बच्चा हुआ था। घर में कोई पुरुष नहीं था न ही कोई और वयस्क। दोनों बच्चे घर का सभी काम संभाल रहे थे।

अफसर स्त्री के सामने एड्रियन की माँ ने तमाम झूठ बोले। बताया कि उसकी सहायिका उसकी अपनी माँ है मगर उस दिन वह अपने बीमार भाई को मिलने चली गयी थी लंदन के बाहर। उसने यह भी कहा की एड्रियन केवल उसके कुत्ते की देखभाल करता है। खाना देना या मैदान ले जाना आदि। जब पूछा गया कि शाम को छैः बजे के बाद उसका आठ बरस का जेसन क्यों बाज़ार के पास देखा गया तो वह पहले तो झुठलाने लगी फिर कहा कि वह कुत्ते का खाना लाने गया था, जो कि ख़तम हो गया था और उसका कुत्ता केवल वही खाता है।
बात दबकर रह गयी। सहायक शिक्षिका के होते मुझे एड्रियन से कम ही जूझना पड़ता था। यहां प्राइमरी क्षेत्र में बच्चों को डांटना या सज़ा देना कतई मना है। अभिभावकों से उलझना मुसीबत को आमंत्रण देना है। उनके अधिकार ज्यादा हैं। आप कोई नकारात्मक शब्द भी नहीं निकाल सकते उसको लेबिल मान लिया जाएगा।

दो महीने के बाद एड्रियन बराबर स्कूल आने लगा और उसकी माँ उसी अदा से अपने कुत्ते के संग आने लगी। कुत्ता हरदम चमकता होता था। साफ़ सुथरा। उसकी नस्ल बेहद महँगी वाली थी। वह नाटी जात का बुलडॉग था सफ़ेद से रंग का और उसकी चमड़ी पर काले काले गोल चकत्ते थे ऐसे कि जैसे किसी ने छापे हों। मुझे पता चला कि उसका पिल्ला करीब एक लाख का आता था। आजकल उसका दाम तीन लाख चल रहा है।

आने के हफ्ते बाद ही प्लेग्राउंड में झगड़ा हो गया। सब बच्चे किसी वस्तु पर झपट रहे थे। एड्रियन रो रोकर सबको मार पीट रहा था। प्लेग्राउंड की ड्यूटी टीचर ने देखा तो वह एक दो इंच की प्लास्टिक की थैली थी जिसे हम जिपलॉक कहते हैं। इतनी सी चीज़ पर इतना कोहराम . टीचर ने उसको जब्त कर लिया। एड्रियन गिड़गिड़ाने लगा कि वह उसकी माँ की थी और वह नाराज़ होगी। पूछा कि यह क्यों इतना जरूरी है। एड्रियन ने बताया कि यह उसकी माँ का “पफ ” है। प्रधान अध्यापिका के पास पेशी हुई। वहां एड्रियन ने बताया कि उसकी माँ इसको मुंह के पास लेजाकर सांस के साथ अंदर खींचती है। बहरहाल वह प्लास्टिक का बैग खाली था। एड्रियन को नहीं पता था कि इसमें एक सफ़ेद पाउडर भी होता है। पफ का नाम सुनते ही बच्चों में जो जानकदार थे वह उसको छीनने लगे और मुंह के पास ले जाकर नाटक करने लगे। प्रधान ने जूनियर स्कूल से जेसन को बुलवाया और दो अन्य वयस्क लोगों की उपस्थिति में उससे पूछताछ की। जेसन बहुत डरता रहा मगर फिर उसने कबूला कि उसकी माँ की दवाई की पाउच है जो वह अक्सर लेती है।
मामला आगे नहीं बढ़ाया गया केवल उसकी एक रिपोर्ट लिखकर एड्रियन की फाइल में दबा दी गयी।  मगर अन्य अभिभावकों की गपशप से बात एड्रियन की माँ तक पहुँच ही गयी। जून के अंत में पेरेंट्स डे होता है। एड्रियन की माँ भी नियत समय पर आई। उसके संग खुलकर बात करने का यह मेरा पहला मौक़ा था। मैंने बातचीत को एड्रियन के काम तक ही सीमित रखा। मगर उसने खुद ही अपनी राम कहानी सुना डाली।

वह एक बेहद अमीर बाप की एकलौती संतान थी। टीनएज में वह पढ़ाई वगैरह में इतनी अच्छी नहीं थी। अतः इधर उधर ध्यान जाने लगा। एक लड़के से दोस्ती हो गयी। पैसा बहुत था हाथ खर्च के लिए। जहां तहाँ उसके संग जाना। चोरी से अवैध फिल्में देखना आदि सामान्य बातें हैं। वीडियो नया नया चला था। वह हर अच्छी बुरी फिल्म लाते और जब वयस्क लोग दिन के समय काम पर होते वह लोग घरों में बैठकर देखते। इसी के संग ड्रिंक्स का दौर भी चलता। धीरे धीरे उसकी लालसा बढ़ती गयी और वह पफ के चक्कर में फंस गयी। माँ बाप को पता चला तो उसको बहुत समझाया, सख्तियां कीं। मगर वह नहीं सुधरी। फिर एक दिन गर्भ से हो गयी। उसके पिता को सहन नहीं हुआ और उन्होंने उसे घर से निकाल दिया। बिना नौकरी के बॉयफ्रेंड ने कुछ दिन किराये के घर में रखा फिर चुपचाप बिना किराया दिए भाग गया। रोती-धोती फिर माँ के पास गयी मगर उन्होंने सहारा नहीं दिया। तब वह सोशल सिक्योरिटी की पनाह में चली गयी। जेसन का जन्म हुआ तो उसे सरकारी आवास मिल गया। तबसे वह वहीँ रहती है। उसका भागा हुआ बॉयफ्रेंड भी अब वापिस उसी के पास आता जाता है। कोई दूसरा पुरुष उसे मान्य नहीं। मगर दोनों नशेड़ी हैं। कुछ भत्तों के सहारे और कुछ उसकी कमाई से वह बच्चे पाल रही है। अलबत्ता अमीर की बेटी की आलसी आदतें बहुत नहीं सुधरीं हैं। मगर वह नशा नहीं छोड़ पाती सोशल वर्कर्स को पता है कि वह एक रेजिस्टर्ड ड्रग एडिक्ट है। जब तक कर सकती है वह अपने बच्चे नहीं छोड़ेगी, और उसको पूरी उम्मीद थी कि एक दिन उसके माँ बाप उसे अवश्य स्वीकार कर लेंगे। उसका कुत्ता उसको बहुत प्यारा है मगर अब वह बूढ़ा हो चला है। उसको एक बेटी की आस थी मगर तीसरा बच्चा स्टीवन भी एक लड़का ही है। जेसन और एड्रियन को वह बहुत प्यारा है। वह लोग खुश हैं।

मैंने अपनी एक डॉक्टर मित्र को यह कहानी सुनाई तो उसने बताया कि एड्रियन के खून में ड्रग्स का असर होने की बहुत संभावना है। उसे भी तलब लगती है शायद। अक्सर नशेड़ियों के बच्चे मानसिक रूप से अस्थिर स्वभाव के होते हैं। वह जीवन में बहुत कम आगे बढ़ पाते हैं और उनका इम्यून सिस्टम बहुत कमजोर हो सकता है। तम्बाकू सेवन वालों के बच्चे भी इसी श्रेणी में आते हैं।

*कादम्बरी मेहरा

नाम :-- कादम्बरी मेहरा जन्मस्थान :-- दिल्ली शिक्षा :-- एम् . ए . अंग्रेजी साहित्य १९६५ , पी जी सी ई लन्दन , स्नातक गणित लन्दन भाषाज्ञान :-- हिंदी , अंग्रेजी एवं पंजाबी बोली कार्यक्षेत्र ;-- अध्यापन मुख्य धारा , सेकेंडरी एवं प्रारम्भिक , ३० वर्ष , लन्दन कृतियाँ :-- कुछ जग की ( कहानी संग्रह ) २००२ स्टार प्रकाशन .हिंद पॉकेट बुक्स , दरियागंज , नई दिल्ली पथ के फूल ( कहानी संग्रह ) २००९ सामायिक प्रकाशन , जठ्वाडा , दरियागंज , नई दिल्ली ( सम्प्रति म ० सायाजी विश्वविद्यालय द्वारा हिंदी एम् . ए . के पाठ्यक्रम में निर्धारित ) रंगों के उस पार ( कहानी संग्रह ) २०१० मनसा प्रकाशन , गोमती नगर , लखनऊ सम्मान :-- एक्सेल्नेट , कानपूर द्वारा सम्मानित २००५ भारतेंदु हरिश्चंद्र सम्मान हिंदी संस्थान लखनऊ २००९ पद्मानंद साहित्य सम्मान ,२०१० , कथा यूं के , लन्दन अखिल भारत वैचारिक क्रान्ति मंच सम्मान २०११ लखनऊ संपर्क :-- ३५ द. एवेन्यू , चीम , सरे , यूं . के . एस एम् २ ७ क्यू ए मैं बचपन से ही लेखन में अच्छी थी। एक कहानी '' आज ''नामक अखबार बनारस से छपी थी। परन्तु उसे कोई सराहना घरवालों से नहीं मिली। पढ़ाई पर जोर देने के लिए कहा गया। अध्यापिकाओं के कहने पर स्कूल की वार्षिक पत्रिकाओं से आगे नहीं बढ़ पाई। आगे का जीवन शुद्ध भारतीय गृहणी का चरित्र निभाते बीता। लंदन आने पर अध्यापन की नौकरी की। अवकाश ग्रहण करने के बाद कलम से दोस्ती कर ली। जीवन की सभी बटोर समेट ,खट्टे मीठे अनुभव ,अध्ययन ,रुचियाँ आदि कलम के कन्धों पर डालकर मैंने अपनी दिशा पकड़ ली। संसार में रहते हुए भी मैं एक यायावर से अधिक कुछ नहीं। लेखन मेरा समय बिताने का आधार है। कोई भी प्रबुद्ध श्रोता मिल जाए तो मुझे लेखन के माध्यम से अपनी बात सुनाना अच्छा लगता है। मेरी चार किताबें छपने का इन्तजार कर रही हैं। ई मेल kadamehra@gmail.com