बाल कहानी

पतंग की कहानी

बारह वर्ष का विहान रोते-रोते दादा जी के पास आया। दादा जी दादा जी देखो न सबकी पंतग तो आकाश में कलाबाजी खा रही है। पर मेरी पंतग तो ऊपर जाती ही नहीं है। बार-बार नीचे गिर जाती है। मेरे सब दोस्त मुझ पर हंस रहे हैं। सोनू ठीक से उड़ीची नहीं दे रहा था इसलिए नहीं उड़ रही थी।
मुझे सोनू पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मैंने सोनू की पतंग फाड़ दी। फिर हम दोनों का बहुत झगड़ा हुआ। सोनू ने मुझे पीठ पर जोर से मारा है।
दादा जी ने विहान के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा- विहान बेटा,आज मैं तुम्हें पंतग की कहानी सुनाता हूँ। पतंग दुनिया का सबसे सस्ता और अनूठा खिलौना है।पतंग का नाम सुनते ही मन हल्का सा होकर उड़ने के लिए बेताब हो जाता है। यह चटक रंग की नाजुक सी पतले से कागज से बनी,बांस की दो पतली खपच्चियां पर सधी रहती है और पतली सी डोर के सहारे ऊंचे अनंत आकाश में उड़ने के लिए तैयार रहती है।
दादा जी बोलते जा रहे थे और विहान गाल पर हाथ रखे ध्यान से सुन रहा था। अचानक विहान बोल पड़ा। दादा जी मुझे पतंग उड़ाना बहुत अच्छा लगता है। यह बहुत मजेदार खेल है। दादा जी बोले बेटा- पतंग सिर्फ एक खेल मात्र नहीं है। इस छोटी सी नाजुक सी पतंग में जीवन का सार छिपा है। अच्छा दादा जी,यह सार क्या होता है विहान ने उत्सुकता से पूछा?
दादा जी बोले बेटा-हमारा जीवन भी पतंग की मानिंद है। सुंदर, हल्का और उम्मीदों से भरा हुआ। हर व्यक्ति अपनी इच्छाओं की डोर के सहारे पतंग की भांति उड़ना चाहता है।अपने भीतर की क्षमता से उड़ीची देकर ऊंचे आसमान में जाना चाहता है।
इच्छाएं उम्र के हर पड़ाव पर जन्म लेती हैं। मनुष्य अपने प्रयास द्वारा उन्हें पूरा होते देखना चाहता है।
आसमान की पतंग सा एक सपना सदा साथ रहता है।जो हर स्थिति में सफलता की आशा करता है।
बीच में रुक कर दादा जी बोल पड़े- अच्छा विहान यह बताओ क्या पतंग एक बार में आकाश को छूने लगती है?
नहीं,दादा जी कितनी मुश्किल से ऊपर जाती है। आज तो मैंने बहुत कोशिश की, पर मेरी पतंग ऊपर
नहीं गई। कल सोनू के साथ भी ऐसा ही हुआ था।
हाँ बेटा! तुम ठीक कह रहे हो।
पतंग एक बार में ही आसमां छूने लगे ऐसा बहुत कम होता है। पतंगबाज एक-दो बार सफलता न मिलने पर भी प्रयास करना नहीं छोड़ते। पतंग के नीचे आने पर वे अगली बार हवा के रूख को भांपकर उड़ीची की दिशा बदलते हैं और परिणाम आकाश में दिखाई देता है। इसी प्रकार जीवन में भी हर कोशिश करने वाले को सफलता मिले यह जरूरी नहीं है। कई बार हमें नाकामियों को भी सबक मानकर उनसे सीख लेकर आगे की दिशा तय करनी होती है।
पतंग पीछे की ओर से धागे के जोतों से बंधी होती है। जो कि आसमान में भी उसका संतुलन बनाए रखते हैं। यदि जोते सही न बंधें हों तो पतंग आसमां तक नहीं पहुंच पायेगी। छोटी सी उड़ान भी नहीं भर पायेगी। इसी तरह  जीवन में रिश्तों की अहमियत जोतों की तरह होती है। बहुत नाजुक धागे की तरह। फिर वो रिश्ता पारिवारिक हो या मित्र का।                जोते ठीक न बंधें हों तो जीवन  गोते लगाने लगता है। तुमने आज अपने सबसे प्रिय मित्र सोनू से झगड़ा कर लिया इसलिए उसने पतंग उड़ाने में तुम्हारी मदद नहीं की। दादा जी, सोनू ठीक उड़ीची नहीं दे रहा था इसलिए मैंने उससे
झगड़ा किया।
विहान बेटा, मेरी बात ध्यान से सुनो-तुम्हें अपने मित्र पर विश्वास करना चाहिए था। हो सकता है सोनू की गलती न हो। हवा के रुख के कारण पतंग ऊपर न जा रही हो।
एक पतली सी डोर के सहारे पतंग आकाश तक पहुंच जाती है। पर यदि डोर कच्ची हो तो राह से ही टूटकर नीचे आ गिरती है। जीवन की पतंग भी भरोसे की डोर के सहारे उम्मीद को असमां तक ले जाती है। हर स्थिति में आपसी भरोसा होना चाहिए। एक-दूसरे पर सदा विश्वास होना चाहिए। विश्वास टूटा तो जीवन की पतंग देखते ही देखते धरा पर आ जाती है और फिर नीचे गिरी पतंग की ओर कोई नहीं देखता। हर कोई उड़ती पतंग की ही तारीफ करता है।
अच्छा दादा जी, मुझसे गलती हो गई। मैं कल सोनू से क्षमा मांग कर दोस्ती कर लूंगा। शाबाश बेटा! तुम तो बहुत समझदार हो।
अच्छा बेटा एक बात और है जो तुम पंतग से सीख सकते हो। अच्छा दादा जी, वो क्या है?
बेटा,पतंग जब आसमान में होती है। तो अन्य कई पतंगें उसके आसपास होती हैं। उसकी डोर काटने को आतुर रहती हैं। सबसे बचते हुए उसे अपना अस्तित्व बनाए रखना होता है। प्रतियोगिता के माहौल में हमारे आसपास भी कई चुनौतियां हैं – आगे बढ़ने की, सबकी अपेक्षाओं को पूरा करने की, सेहत बनाए रखने की और सबसे बड़ी विपरीत स्थितियों में सफलता पाने की। इन चुनौतियों के साथ ही जीना है। साहस के साथ अपना अस्तित्व बनाए रखना है और आसमां की पतंग की तरह देखनेवालों को खुशी भी देना है। जी,दादा जी ! मैं आपको वचन देता हूँ कि अब मैं छोटी छोटी बात पर निराश नहीं होऊंगा।
विहान बेटा तुम्हें घर रखी पतंग अच्छी लगती है या उड़ती हुई। दादा जी मुझे तो बहुत ऊँची उड़ती हुई पतंग अच्छी लगती है।
विहान तुम ठीक कह रहे हो।
पतंग घर के कोने में रखी हो, तो उसे कोई उत्साह से नहीं देखता है। पर आसमां में उड़ती पतंग की ओर से कोई नजरें चुरा ही नहीं सकता है। बरबस सब बाध्य हो जाते हैं उसे देखने और तारीफ करने के लिए। इसी प्रकार जीवन में भी अगर कोई व्यक्ति योग्यता हासिल करता है।अपनी क्षमता से खुद को स्थापित करता है। भीड़ से अलग पहचान बनाता है। तब सब लोग उसकी ओर आकर्षित होते हैं। उसकी तारीफ करते हैं। उस जैसा बनने का प्रयास करते है। अच्छा दादा जी, मैं भी बड़ा होकर उड़ती पतंग जैसा ही बनने की कोशिश करुंगा।
बेटा, ऊपर जाने के बाद ही पतंग को एहसास होता है कि आसमां कितना बड़ा है। उसकी दुनिया कितनी विशाल है। उड़ने की अनंत संभावनाएं हैं। इसी प्रकार जीवन में भी जब हम वैचारिक रूप से ऊपर उठकर सोचने लगते हैं। तब हमें पता लगता है कि दुनिया का विस्तार कितना है। जानकारी हासिल करने के बाद पता चलता है कि ज्ञान का भंडार तो बहुत विस्तृत है। स्वयं को पूर्ण करने की संभावनाएं अनंत हैं। हमें सीखने की गति और क्षमता बनाए रखना है। हमें भी पतंग की तरह खुद को व्यस्त रखना है।
आसमां में बने रहने के लिए सतत प्रयास करते रहना है। पतंग के आसमां में जाते ही उससे जुड़ा हर व्यक्ति खुश नजर आता है। चाहे वह पतंग उड़ाने वाला हो या उसके सहायक हों या फिर उड़ती पतंग को देखने वाले हों। हर व्यक्ति बहुत प्रसन्न हो जाता है। मानो पतंग खुश तो सब खुश। हम सब भी जीवन में खुश रहना चाहते हैं। खुश रहने की पहली शर्त यह है कि हम दूसरों को खुश रखें। खुश रहकर ही सबको खुश रखा जा सकता है।
विहान बेटा, तो यह है तुम्हारी पतंग की कहानी।
दादा जी, पतंग की कहानी तो बहुत अच्छी है। कल मैं अपनी कक्षा में सभी मित्रों को सुनाऊंगा।
दादा जी के गले में हाथ डालकर विहान कह उठता है – मेरे दादा जी सबसे अच्छे…….
— निशा नंदिनी भारतीय

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 nishaguptavkv@gmail.com