गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आ गए जो चंद दाने पेड़ पर
लग गए कितने निशाने पेड़ पर
काटकर जंगल बड़ी बिल्डिंग बनी
खो गए चिड़ियों के गाने पेड़ पर
खिलती है कोई कली तो यूँ लगे
धूप लगती मुस्कुराने पेड़ पर
आ गया कालीन लेकर बर्फ की
सर्द ये मौसम बिछाने पेड़ पर
खेल मत क़ुदरत से अंकुर तू कभी
कुछ तरस तो खा सयाने पेड़ पर
— अंकुर शुक्ल ‘अनंत’

अंकुर शुक्ल 'अनंत'

कानपुर,उत्तर प्रदेश M- 7398929202