गीतिका/ग़ज़ल

सिसक रहे हम छुप छुप कर।

सिसक रहे हम छुप छुप कर मगर तुम्हें कहें कैसे।
जो अभाव रहा उम्रभर वो सफ़र तुम्हें कहें कैसे।

तुम न समझोगे वो तन्हाई यादों की वो शहनाई;
अश्क आंखों में भर कर वो सहर तुम्हें कहें कैसे।

खफ़ा होकर चले जाना और फिर लौट के न आना;
तुम्हारी जुस्तजू रही सदा वो असर तुम्हें कहें कैसे।

खता जो की होती तो हम न दोष तुम्हें देते कभी;
बेताब कैफियत की फिर वो डगर तुम्हें कहें कैसे।

बहारें फिर आई हैं तो ऐ हमसफ़र कहो हमसे ये;
ग़ज़ल जो न हुई कभी पूरी वो बह्र तुम्हें कहें कैसे।

कामनी गुप्ता***
जम्मू !

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |