कोरोना- एक कालखंड
एक कालखंड हमें अनुशिक्षित कर रहा
जो था पुरातन उसे अनुशंसित कर रहा
त्यागना होगा जो है पश्चिम से मिला
फिर बने सनातन, अभिमंत्रित कर रहा
जिन वस्तुओं बिन जीवन था अकल्पनीय
उन सभी भोगों को अनवांछित कर रहा
विलास से परे, आवश्यकता ही भर को
निस दिन ये जीवन आधारित कर रहा
समय की जिस चक्की में थे पिस रहे
अवकाश दे उसे कुछ अनुपूरित कर रहा
दूसरों पर आश्रित नहीं हैं आज हम
फिर से हमें अब स्व-अवलंबित कर रहा
इस महामारी से पहले और बाद को,
भिन्नता के साथ है अवतरित कर रहा
— प्रियंका अग्निहोत्री “गीत”