कविता

यशोधरा का दर्द

सोता छोड गये भगवन तुम
भगवान को पाने को
एक बार भी सोचा क्या तुमनें
निरपराध अर्द्धागिनी को
अरणोदय पर उठी यशोधरा
कितनी व्याकुल हुयी होगी
खोजा होगा उसने फिर
महल के हर कोने गलियारे को
अपने मन को उस निरपराध ने
कैसे तो समझया होगा
बिना बताये छोड गये
मन में मलाल रहा होगा
संग नही चलती तुम्हारे
पश का काँटा नही बनती
राहुल की माँ बनकर
दोनों का कर्तव्य पूरा करती
मुझको बस इतना दुख है।
एक बार बताया तो होता
तो स्वयं हर्ष के साथ तुम्हें
विदा मैंने किया होता
बुद्धत्व प्राप्त कर आने पर
मै भी हर्ष से इठलाती
नगर वासियों की तरह
पूजा का थाल सजा लाती
स्वाभिमान तोड़ा तुमने तो
मैं भी अभिमानी नारी थी
जग दौड़ा दर्शनो को तुम्हारे
पर मै नही आयी थी।

— गरिमा राकेश गौतम

गरिमा राकेश गौतम

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