कविता

मां तुमसे ही जाना

मां, मैंने तुमसे ही जाना
चलना फिरना पीना खाना
दुनिया का ताना-बाना
मां मैंने तुमसे ही जाना

हारी बाजी टूटे सपने
विपदाएं और झूठे अपने
निर्मल मन से अपनाना
मां मैंने तुमसे ही जाना

अंजान जहां जब था सारा
रात अंधेरी एक ना तारा
ऐसे में दीपक बन जाना
मां मैंने तुमसे ही जाना

कीट पतंगे कांकड़ पाती
किसके आगे दुखड़ा गाती
कैसे चुनती चिड़िया दाना
मां मैंने तुमसे ही जाना

बच्चों को ममता दे कर
कोई मोल नहीं लेकर
आंसू पोछ हंसते जाना
मां मैंने तुमसे ही जाना
– शिप्रा खरे शुक्ला
(गोला-खीरी)

शिप्रा खरे

नाम:- शिप्रा खरे शुक्ला पिता :- स्वर्गीय कपिल देव खरे माता :- श्रीमती लक्ष्मी खरे शिक्षा :- एम.एस.सी,एम.ए, बी.एड, एम.बी.ए लेखन विधाएं:- कहानी /कविता/ गजल/ आलेख/ बाल साहित्य साहित्यिक उपलब्धियाँ :- साहित्यिक समीर दस्तक सहित अन्य पत्रिकाओं में रचनायें प्रकाशित, 10 साझा काव्य संग्रह(hindi aur english dono mein ) #छोटा सा भावुक मेरा मन कुछ ना कुछ उकेरा ही करता है पन्नों पर आप मुझे मेरे ब्लाग पर भी पढ़ सकते हैं shipradkhare.blogspot.com ई-मेल - shipradkhare@gmail.com