हास्य व्यंग्य

लेखक-संपादक-संवाद

आदरणीय संपादक महोदय, सुप्रभातम ! आशा है, आप स्वस्थ व सानंद रहकर लॉकडाउन का अनुपालन कर रहे होंगे ! मैंने इधर पत्रिका में प्रकाशन हेतु कई रचनाएँ प्रेषित की है, किन्तु एक भी प्रकाशित न होना विस्मित करता है ! यह सुयोग्य नहीं है क्या ? आपके एतदर्थ उत्तर भी अप्राप्त है । मैं संपादकत्व व्यस्तता समझता हूँ, बावजूद अनिर्णय स्थिति से मन में जोशभाव से दूरी बन जाती है ! आपकी सदैव स्वस्थता की कामना लिए…. सादर भवदीय- लेखक ।
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आदरणीय लेखक महोदय ! बहुत ही विनम्रता से आग्रह है कि आपकी रचनाएँ उत्कृष्ट, शोधपूर्वक और उच्चकोटि की हैं, परंतु इस पत्रिका का कलेवर व पाठकीय समाज उस कोटि के अनुरूप न होने से उन रचनाओं का प्रकाशन संभव नहीं है. अतः आपसे पुनः विनम्र आग्रह है कि कृपया इस पत्रिका के लिए रचनाएँ प्रकाशनार्थ न भेजें. सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद.
सादर-  संपादक ।
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आदरणीय संपादक महोदय, सादर नमस्कार ! आपने ही प्रथम मेल में रचनाएँ माँगी, फिर जब मैंने रचनाएँ भेजनी शुरू की, तो आप ही मना कर रहे हैं ! यह पत्रिका व्यक्तिगत नहीं है, यह जब से प्रकाशित हुई, तो सार्वजनिक हो गई ! तब आप संपादक के रूप में मना नहीं कर सकते कि रचनाएँ मत भेजिए, यह तो दो पड़ोसी का झगड़ा हो गया कि अपने-अपने बच्चे को संभालो, कोई किसी के आँगन नहीं आए ! मैंने जो आलेख भेजे हैं, वो सभी शोध नहीं है । आप तो खुद कविता, विज्ञान आदि आलेख माँगे, अब इनकार कर रहे हैं । रचना अगर उच्चकोटि की है, तो ऐसा पहला संपादक होंगे कि जो विनम्रतापूर्वक कहते हैं कि रचना मत भेजिए ! अगर नहीं भेजिए, तो यह क्यों लिखना कि ‘सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद’ ! फिर यह पत्रिका कैसे पत्रिका के तत्वश: है ?
अगर कोई अंदरूनी बात है, तो वो बताइये ! अन्यथा लेखक के साथ इसतरह के व्यवहार ठीक नहीं है ! मैं तो रचनाएँ भेजते रहूँगा, यह तो पता चले या साक्ष्य रहे कि यह पत्रिका अचानक मुझे निजी कारणों से छापनी बंद कर दी है ! कई रचनाएँ अन्य की भी है, जो मेरे आलेख जैसे है, पर यह पत्रिका में प्रकाशित है !
मुझे आपके पत्र पढ़कर दुःख हुआ । इस मेल से यह नहीं लगा कि यह किसी संपादक के पत्र है, बल्कि व्यक्तिगत पत्र है । संपादक तो उत्साहवर्द्धक होते हैं ! रचनाएँ तो भेजते रहूँगा, ताकि साक्ष्य रख सकूँ, जो भविष्य में अन्यार्थ रचनात्मक काम में आ सके ! महोदय, एतदर्थ पुनर्विचार की कृपा करेंगे !
सादर भवदीय- लेखक ।
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लेखक महोदय ! व्यक्तिगत जैसा कोई प्रश्न नहीं उठता. व्यक्तिगत रूप से न आप मुझे जानते हैं न मैं आपको.:)
आपने अपनी रचनाओं के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि वे उत्कृष्ट हैं, परंतु इस पत्रिका के कलेवर के मुताबिक नहीं हैं अतः प्रकाशित नहीं किए गए. पहले भी आपसे आपके कुछ आलेखों के बारे में यही निवेदन मैंने किया था – यदि आपको याद हो तो.
यह मंच सार्वजनिक है, रहेगा – पाठकों लेखकों का ही मंच है. इस पत्रिका के लिए नित्य सैकड़ों रचनाएँ प्रकाशनार्थ आती हैं, सभी का प्रकाशन संभव नहीं होता – हो ही नहीं सकता. जो कलेवर के मुताबिक होती हैं प्रकाशित होती हैं. आप भी भेजते रहें, कोई भी भेज सकता है. भेजने में कोई रोक नहीं है. आपसे निवेदन इसलिए किया था कि आप प्रोएक्टिव होकर रचनाओं के बारे में पूछते हैं कि ये नहीं छपी वो नहीं छपी. अगर ऐसा है तो निवेदन किया गया है कि कृपया रचना न भेजें. जो कलेवर के मुताबिक प्रकाशन योग्य होते हैं उन्हें सहर्ष प्रकाशित करते हैं, करते रहेंगे.
सधन्यवाद- संपादक ।
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आदरणीय संपादक महोदय, सादर नमस्कार ! लेखक और संपादक के बीच व्यक्तिगत जानने का क्या मतलब है ? व्यक्तिगत रूप से मैं महामहिम राष्ट्रपति और माननीय प्रधानमंत्री महोदय को भी कहाँ जान रहा हूँ ? कोई शादी नहीं बनाने हैं या पारिवारिक संबंध नहीं बनाने हैं, जो वैसी जानना हो ! हाँ, google सबकी पहचान खोज निकालता है ! आपकी भी, मेरी भी ! आपकी हिंदी सम्मत अतुलनीय उपलब्धि है, बधाई ! ….पर इस पत्रिका को मैंने खोज निकाला है, आपने लेखक को कहाँ खोजे ? मैं भी हिंदी सेवा कर रहा हूँ, हिंदी के कारण राष्ट्रपति पुरस्कृत हूँ, तो गिनीज बुक में नाम दर्ज है । हिंदी शब्द ‘श्री’ को मैंने 2 करोड़ 5 लाख 912 तरीके से लिखा है… इत्यादि।
इस पत्रिका का कलेवर क्या है ? आप बताने की कृपा करेंगे ! उस कलेवर की ‘काट’ रचनाएँ (प्रकाशित) मैं अँगुलियों पर गिना कर बताएंगे ! मैंने इधर जो आलेख भेजा है । क्या यह इस पत्रिका के कलेवर के नहीं है ? क्यों और कैसे ? हाँ, हर लेखक ‘प्रोएक्टिव’ ही होते हैं, चाहे बड़े लेखक हो या मुझ जैसे अदना लेखक ! सबों की यह अपेक्षा रहती है, उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो ! वह आखिर लिखते क्यों हैं ? आप भी संपादक के प्रति ‘प्रोएक्टिव’ रहे होंगे ! कम ही लेखक हैं, जो स्वांत: सुखाय लिखते हो ! जहाँ तक प्रोएक्टिव की बात है, तो आपने भी तो मेरे द्वारा रचना प्रेषण के same day में छापे हैं ! अगर ‘रचनाकार’ को सैकड़ों रचनाएँ रोज प्राप्त होती है, तो यह तो अच्छी बात है ! प्रिंट पत्रिका में स्पेस की कमी रहती है, किन्तु blog के लिए यह स्पेस वृहद फलक में बदल जाते हैं !
आशा है, मेरे भेजे गए रचनाओं पर प्रकाशनार्थ विचार करने की कृपा करेंगे ! आज भी कुछ भेजूँगा ! आप इसे ‘प्रोएक्टिव’ नहीं समझ बैठेंगे ! वैसे आज ‘मातृशक्ति दिवस’ है, किन्तु रचनाओं के रिजेक्शन से लगता है कि माँ ने मुझे ही जन्म क्यों दी, इसे अन्यथा न लेंगे ?
सादर भवदीय-  लेखक

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.