कविता

घर बार बिहीन

घर बार बिहीन
ये दुखी ये दीन !
घर बार बिहीन
ये दुखी ये दीन !!
पैरों पर खड़ा होना चाहता है ।
अपने पैरों पर उठना चाहता है।।
यह जो है देश की मिट्टी
रास्ते पत्थर कंकड़ गिट्टी !
यह जो है देश की मिट्टी
रास्ते सत्य पथ की मिट्टी !!
उसी को चुमना चाहता है ।
माथे पर लगाना चाहता है।।
नया जोश जगाऊं
ह्रदय ठोस बनाऊं !
नयां जोश जगाऊं
सोए हुए को जगाऊं !!
मेहनत में घूमना चाहता है ।
मेहनत को घुमाना चाहता है।।
घर बार बिहीन
ये दुखी ये दीन !
घर बार बिहीन
ये दुखी ये दीन !!
पैरों पर खड़ा होना चाहता है ।
अपने पैरों पर उठना चाहता है।।
जो भी हो मौलिक गीत
उसमें हो  सभ्य संगीत !
जो भी हो मौलिक गीत
उसमें हो देश प्रेम संगीत !!
उसी गीतों में झूमना चाहता है ।
उसी गीतों पर झूमाना चाहता है।।
खुला नीला गगन
ऐसा हो हमारा मन !
खुला नीला गगन
ऐसा हो हमारा मन !!
उसी गगन में उड़ना चाहता है ।
आसमान पर उड़ाना चाहता है ।।
घर बार बिहीन
ये दुखी ये दीन !
घर बार बिहीन
ये दुखी ये दीन !!
पैरों पर खड़ा होना चाहता है ।
अपने पैरों पर उठना चाहता है।।
— मनोज शाह मानस

मनोज शाह 'मानस'

सुदर्शन पार्क , मोती नगर , नई दिल्ली-110015 मो. नं.- +91 7982510985