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छात्रगण घर पर रहकर स्वाध्याय करें !

आज जिस तरह सैकड़ों कोचिंग संस्थान खुल रहे हैं बिना रजिस्ट्रेशन का यह बच्चों के साथ उनके अभिभावक को भी परेशान कर रहे हैं । एक तरफ बच्चों पर पढ़ाई का बोझ बढ़ता जा रहा है वहीं दूजे तरफ अभिभावको के पॉकेट ढीले होते जा रहे हैं। माँ-बाप सोचते है कि वो किस संस्थान में बच्चों की I

इंजीनियरिंग, मेडिकल आदि की तैयारी के लिए भेजे, क्योंकि हर ‘कोचिंग’ संस्थान का ‘टैग लाइन’ यह रहता है — ‘भारत का नंबर 1 इंस्टिट्यूट’ पर कोचिंग इंस्टिट्यूट वाले इनका पैमाना नहीं बताते हैं कि वे नम्बर वन कैसे हैं ? विज्ञापन के कारण एक कोचिंग के टॉपर को दूसरे कोचिंग के भी टॉपर में दिखाया जाता है और यह क्रम चलता रहता है पता नहीं कैसे ? एक बच्चा इतने सारे कोचिंग में कैसे पढ़ लेते हैं या भ्रष्टचार का रीति यहाँ भी पैर फैलाये हुए हैं ? कोचिंग वाले ‘फी’ के रूप में मन-माफिक रूपया वसूलते हैं, रसीद भी नहीं देते हैं पर न तो कोर्स को पूरा करते हैं और न ही साप्ताहिक टेस्ट लेते हैं।

स्टूडेंट्स के लिए कोचिंग संस्थानों में न तो टॉयलेट मुहैया कराई जाती और न ही शुद्ध जल की व्यवस्था होती है। मैं दैनिक जागरण का नियमित पाठक होने के नाते यह कहना चाह रहा हूँ कि बच्चे बिना कोचिंग के भी आईआईटी, मेडिकल, आईएएस इत्यादि एग्जाम निकाल सकते हैं और अच्छे कॉलेज में पढ़ सकते हैं। वे स्कूल/कॉलेज में बढ़िया से पढ़े और तकनीक के युग में ‘गूगल से लेकर यू-ट्यूब’ तक से लेक्चर डाउनलोड कर सेल्फ पढ़ सकते हैं ताकि न पेरेंट्स पर उतना दवाब हो और न द्वन्द भरे कोचिंग के चक्कर में वे फंसे ! कोरोना कहर के कारण कोटा में फँसे विद्यार्थियों को लॉकडाउन अवधि में खाना और अन्य सुविधाएं नहीं मिल पा रही।
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अभी देशवासी ‘लॉकडाउन’ का पूर्ण पालन कर रहे हैं। इसी बीच बिहार के शिक्षक संघों ने बिहार शिक्षा विभाग को एक अघोषित समझौता के आलोक में चल रही नियोजित शिक्षकों की हड़ताल को समाप्त करने संबंधी पत्र सौंपा, जो कि 5 मई से नियोजित शिक्षकों की विद्यालयवार उपस्थिति समझा जाने लगा।

ध्यातव्य है, लाखों नियोजित शिक्षक संदर्भित मुख्यालय से दूरी लिए हैं  तथा आवागमन हेतु वाहन-परिचालन बाधित होने से उनकी व्यक्तिश: दैहिक उपस्थिति संभव नहीं हो पा रही है । शिक्षा विभाग के 6 मई के पत्र में घर पर फँसे वैसे शिक्षकों के लिए जो दूसरे जिलों में शिक्षक हैं, को लेकर लिखा है कि वे गृह जिलाधिकारी से विद्यालय मुख्यालय जाने के लिए यात्रा-पास ले लेंगे।

प्रश्न है, जो शिक्षक अपने जिले में ही शिक्षक हैं और घर पर फँसे हैं और विद्यालय या मुख्यालय कई किलोमीटर दूर है और उनके पास कोई वाहन नहीं है, वो जिलाधिकारी या संबंधित मुख्यालय व विद्यालय ‘योगदान’ लेने कैसे पहुँचेगे ? अगर विभाग व्हाट्सएप पर फरमान जारी करते हैं, तो लॉकडाउन अवधि तक योगदान व्हाट्सएप से ही क्यों न ले लेते ? ऐसे शिक्षकों को अन्यथा की स्थिति में मार्गदर्शन भी अगर कहीं से नहीं मिल रही है, तो वो क्या करें, क्या ना करें ? द्वंद्वात्मक स्थिति लिए है और मुख्यालय में योगदान के लिए आपाधापी और धमाचौकड़ी जारी है। तो वहीं हड़ताल खत्म होने के बाद भी नियोजित शिक्षकों को वेतन अबतक प्राप्त नहीं हो पाई है।
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अब सवाल यह उठती है, अगर ऐसे शिक्षकों से सरकार पिंड छुड़ाना चाहते हैं तो विद्यालय की आवश्यकता ही क्यों ? विद्यालय की आवश्यकता नही है, तो फिर कोचिंग संस्थान भी क्यों हो ? लॉकडाउन से घर पर रहने की आदत पड़ ही गयी है, इसलिए छात्रों से आग्रह है कि वे सब घर में रहकर ही स्वाध्याय करेंगे । अभिभावक, बड़े भाई-बहन, पुस्तक, इंटरनेट इत्यादि से सहायता लेंगे!

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.