कविता

कविता – वक्त का दर्पण

वक्त के साथ बहुत कुछ फिर बदल जायेगा
कड़ोड़ों खर्च कर गंगा निर्मल नहीं हुई
बस पचास दिन में गंगा निर्मल हो गई।
उसे दूषित करने वाले हाथ इतरायेंगे
फिर से गंगा मैली हो जायेगी
मैला आँचल होगा फिर भी माँ कहलायेगी
गरीबों के नाम पर अमीर, अमीर हो जायेंगे
गरीबों के हिस्से की राहत और अनुदान
चंदअमीरों की तिजोरियों में बंद हो जायेंगे
आज डॉक्टरों को हम भगवान कहते हैं
कल फिर उनकी छोटी सी भूल पर
उनके के खून के प्यास सब हो जायेंगे।
योजनाएं बड़ी-बड़ी बनेगी कागजों पर
फिर से अनाथों एवं बेसहारों के लिये
अनाथालय या बृद्धाश्रम बढ जायेंगे ।
कुछ नहीं बदलेगा कभी इस देश में
सीसीटीवी लगेगा चप्पे चप्पे पर
सारे गुनाह रिकॉर्ड होकर भी खो जायेंगे
आज बेबसों की बेबसी पर संवेदनाएं
जाग उठी कल फिर हम सब भूल जायेंगे।
कोरोना जायेगा जरूर जाते जाते काश
मानवता जगाकर जाये काश ऐसे सपने
सच हो जाये वक्त का दर्पण सच दिखाये।

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com