कविता

कविता – पैरों के निशान

कुदरत ने दिये कुछ

 अनमोल घड़ियां 

घर में बंद सारी दुनिया

ढ़ूंढने लगी पैरों के निशां ।

सीमित संसाधन हैं फिर भी

मिल रही है अपार खुशियां

पति के कदम रसोई घर में परे

बच्चे भी आकर मचलने लगे।

नित्य नये व्यंजन बनते रात दिन

स्वाद का जादू चला अनेक दिन

खुशी जो अब तक हमारी थी फिकी

ली अंगराई भरपूर बन मनचली।

गृहस्थी की गाड़ी आसान कहाँ

बेध्यानी में फिसली पतिदेव की जुबां

बच्चे भी स्वच्छता का पाठ पढ़े

अब नहीं रहते रसोईघर कभी बिखरे।

फिर से अपनी तकदीर पर

होने लगा सबको  गुमान

गूँज उठी मानों घर में शहनाईयां

तुलिका से सज रहे पैरों के निशान ।

सबके दिलों से मिट रही दूरियाँ

परिवार की ताकत समझे ये जहाँ

गम के बादल भी छट जायेंगे

बस छोड कर जायेंगे निशान।

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com