आत्मकथा

सारिका भाटिया की कहानी – 7

(26) 2014 में पापा का निधन और मेरे सुसराल की परेशानी

2013 में मेरी शादी के बाद पापा बीमार हो गए थे। मेरी शादी के बाद ससुराल में सब ठीक चल रहा था। होली के दिन 17 मार्च को पापा का निधन हो गया था। मेरी मां उदास थी। घर का माहौल भी ठीक नहीं था। उसके कुछ महीनों बाद मेरे पति और सास-ससुर का व्यवहार बदल रहा था। मेरे ससुराल वाले मेरे पापा से डरते थे। उन्होंने मेरे ससुरालवालों को बोला हुआ था कि मेरी बेटी को कुछ मत बोलना। जब तक पापा थे, तब तक उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा। लेकिन पापा के जाने के बाद बदल गये। हमें शादी के पहले जो बोला गया था वह झूठ बोला गया। जब शादी के बाद मैंने माहौल देखा तो मैं हैरान थी। सच तो जान चुकी थी, लेकिन चुप रही। चुपचाप सास-ससुर-पति की सेवा करती रही। लेकिन मुझे पता चला चुका था ससुराल वाले क्या चाहते थे, क्या मकसद था। यही कि मेरी शादी जबरदस्ती कराई। मेरा पति शादी नहीं करना चाहता था। उसकी पहले भी दूसरी शादी थी। उनका मकसद था कि नौकरानी बनकर घर में सास-ससुर की सेवा करूं। घर का काम करूं। पति तो साथ नहीं था। मैं परेशान थी। क्या गलती हो गयी मुझसे? पति को बम्बई पसंद था। उसने बम्बई के लिए मुझे शादी की थी, ना कि मुझे चाहता था, क्योंकि मेरे भैया बम्बई रहते थे। अब तो दिल्ली आ गये है। उसके बाद पति ने मेरा साथ गलत व्यवहार किया। पति को सुनने की परेशानी थी। मशीन नही लगाता था। लिप रीडिंग से बात करता था। उसने मुझे बहुत परेशान किया, जिससे बहुत रोती थी। मुझे छोटी छोटी बातों पर डांट भी देता था। उधर सास-ससुर मुझ पर ताना मारते थे, मेरी विकलांगता पर, लेकिन मैं चुप रही, रोती भी थी। मैं सारे काम करती थी। सारे दिन सुबह से शाम तक। थक जाती थी। कोई मदद नहीं करता था। पूरे वर्ष 2014 में इस तरह चलता रहा मेरे साथ।

(27) 2015 में बहुत परेशानी

मेरे पति की नौकरी संकट में थी। नौकरी जहां करते थे वह कंपनी बंद हो गयी थी। जिसके कारण से पति मुझे बहुत परेशान करने लगे। सास ससुर मुझे ताना मारने लगे। मुझे कहते थे तेरी वजह से सब हूआ। साथ में एक लक्ष्य था मैं पति को बदल दूं एक दिन। ये असम्भव था। इस पर रोज सास-ससुर दबाव डालते थे। पति ने अपने मां-बाप को बोला ये लड़की मुझे पसद नहीं है। शादी नहीं करनी थी। वो मेरे लिए काफी दुखद दिन था। मैं मानसिक तनाव में आ गई थी। लड़ाई की। फिर प्यार से उन लोगों ने संभाला। मेरी मम्मी को कहा- नहीं करेंगे दोबारा तंग। लेकिन फिर परेशान कर रहे थे। अप्रैल 2015 में एक दिन सास ससुर ने मुझे बहुत कुछ बोला। मेरी विकलांगता की बुराई की। वो दिन मुझे बहुत गुस्सा आया। गुस्सा में आकर बहुत कुछ बोल दिया। चुप नहीं रही। मैने कहा कि जा रही हूं। कभी नहीं आऊंगी। सम्भालो अपना घर। मैं सारा घर का काम करती हूं। आप मुझ पर ही बुराई निकल रहे। सास ससुर डर गये थे। उन्होंने माफी भी बोला था, लेकिन मै नहीं मानी। हद है। कैसे लोग थे। मेरे भाई लेने आये। बहुत मानसिक तनाव में थी। टूट चुकी थी। मेरी हालत खराब थी। किसी से बात नहीं की एक हफ्ते। मुझे सहन नहीं हो रहा था ससुराल में। घबराहट हो रही थी अंदर। भाई को बोला- ले जाओ मुझे। आज मैं बहुत मजबूत हो चुकी हूं। जो पापा ने एक दिन साहसिक (बोल्ड) बोला था। आज वो मेरे साहसिक होने का दिन आ गया। अपनी लड़ाई खुद लड़ रही हूं। दुनिया पर भरोसा ठीक नहीं है।

(28) ससुराल से घर आने के बाद नौकरी

मै अंदर से टूट चुकी थी। दो तीन महीने तक किसी बात नहीं की। अपने आप में महसूस करती थी कि दुनिया को दिखाकर रहूंगी। उन लोगों ने मजाक बना दिया मेरा। गुस्सा भी आ रहा था। मैं अंदर से चुप थी। मैंनै फैसला कर लिया अब मैं अपने पैरों पर खड़ी रहूंगी। कैसी दुनिया है, कैसे लोग हैं। मेरा पास छोटा फोन था। मेरे भाई ने नया स्मार्ट फोन लेकर दिया। मेरे भैया और मां भी परेशान थे कि क्या करें। लेकिन मैं शांत थी। मैंने फैसला कर लिया कि अपनी मदद स्वयं करूंगी, किसी की मदद नहीं लुंगी।

नये फोन में सब कुछ था। गुगल से कुछ ना कुछ रास्ता दिखता था। एक दिन मैंने दिल्ली फाउंडेशन आॅफ डीफ वीमेन का पता निकाला। मेरे भाई मुझे मना कर रहे थे कि इधर-उधर मत जाओ, घर रहो। पर मुझे अपना रास्ता ढूंढ़ना था। मां मेरी प्रेरणा रही हैं, उन्होंने मेरा साथ दिया। मेरे साथ आज भी रहती हंै। दिल्ली फाउंडेशन आॅफ डीफ वीमेन में जाकर मुझे थोड़ा आत्मविश्वासी बना दिया। इनकी मदद से संकेत भाषा सीखी। वैसे मुझे इसकी जरूरत नहीं थी, क्योंकि मैं बोल सकती हूं। लेकिन मैं सीखना चाहती थी। उसके बाद मेरे अंदर थोड़ी मुस्कान आने लगी। यूरोकिड्स प्लेस्कूल टीचर के संपर्क में आयी। मेरी मां भी उनको जानती थी। उन्होंने कहा कि यूरोकिड्स प्लेस्कूल में कोई वेकेंसी है तो बताये। उस वक्त मेरे भैया ने नया लैपटाॅप लेकर दिया। मैं काफी मजबूत बन चुकी थी। पर लोगों पर विश्वास नहीं करती थी। कोई कुछ बोलता तो जवाब देना लगी।
उस वक्त भैया ने घर बैठे लैपटाॅप में डाटा एंट्री का काम किया। लेकिन तभी यूरोकिड्स प्लेस्कूल से मेरी सहेली का फोन आया जो इंचार्ज थी। उन्होंने कहा- स्कूल में नौकरी लगा रहे हैं, तुम वापस आ जाओ। मेरे लिए खुशी का पल था। मेरे मम्मी-भाई भी खुश थे। अपने को पूरी तरह से मजबूत बना चुकी थी। उधर से सुसराल वालों ने बार-बार मीटिंग के बुलाया, तो मेरी बुराई करते थे। मेरी मां ने उनको शेर की तरह जबाब दिया। लेकिन वो बुलाना नहीं चाहते थे, बस मेरी बुराई करना चाहते थे। कोई भी फैसला नहीं ले रहे थे। उधर स्कूल में मेरी नौकरी चल रही थी।

(29) नौकरी गई और समाज सेवा की शुरुआत

2016 में यूरोकिड्स प्लेस्कूल से नौकरी चली गई। एक साल काम किया था। कारण था कि मेरी आँखों में इन्फेक्शन हो गया था। छुट्टी लेनी पड़ी मुझे, जिसके कारण स्कूल की प्रिंसीपल ने निकाल दिया। किसी और को रख लिया। सभी स्टाफ वाले मुझे निकालना नहीं चाहते थे, लेकिन प्रिंसीपल ने मना कर दिया। उन्होंने किसी और को रख लिया था। शायद ईश्वर मुझसे कुछ और चाहता था। वो है समाज सेवा। मै फोन से सकारात्मक सोच पढ़ती थी। और आज भी पढ़ रही हूं। मुझे अच्छा लगता था। उस वक्त उदास नहीं थी। मुझे ईश्वर पर विश्वास था जरूर मेरे लिए कोई नया रास्ता निकला होगा। उधर मेरा ससुराल का केस शुरु हो चुका था। अब मेरा तलाक हो जायेगा इस साल। कहते हैं ना कि अंधेरा में भी सवेरा होता है। यही हुआ। आज मैं समाज सेवा का काम कर रही हूं। इस समाज सेवा के कारण कई पुरस्कार मिले मुझे। एक समय स्कूल में पढ़ाई में कमजोर थी। आज दिल्ली फाउंडेशन आॅफ डीफ वीमेन से सामान्य ज्ञान से प्रथम पुरस्कार मिला।

आज गरीब बच्चों को भी पढ़ाती हूं। ये मेरे लिए नयी प्रेरणा है। ईश्वर का वरदान है। जो मुझे बहुत अच्छा काम दिया है। ये सब ईश्वर, मेरी मां, पापा भाई, आशा गुप्ता टीचर, डाक्टर प्रेम कक्कड़ के सहयोग से हुआ। उस वक्त तो विकलांगों लोगों के लिए विशेष टीचर नहीं होता था। मेरा मम्मी पापा आशा गुप्ता मेरे लिए स्पेशल टीचर बनी, जिसके लिए डाक्टर ने कहा था मेरे पापा को कि यह बोल सुन नहीं सकती है। आज मैंने अपनी कमजोरी को ताकत बना दिया। आज मेरी टीचर आशा गुप्ता ने मेरा बारे में मेरी मां को बोली सारिका तो बहुत अच्छा बोलने लगी है। वो खुश थी। मुझे मिली थी दो साल पहले। आज भी फोन में बात होती है। ये सब मेरे संघर्ष, बलिदान, सब्र, मेहनत, खुद पर विश्वास का परिणाम है। मैं इतना कहुंगी कि जीवन में बहुत मुश्किल आयेंगी, लेकिन आप पर निर्भर है कैसे मुश्किल का सामना करेंगे।

सारिका भाटिया

जन्म तिथि-08/11/1980 जन्म स्थान- दिल्ली पिता का नाम- late भोज राज भाटिय़ा मां का नाम- नीलम भाटिया भाई- दो भाई शैक्षणिक योग्यता- (1) बीए (ऑनर्स) राजनीति विज्ञान दिल्ली यूनिवर्सिटी मैत्रेयी कॉलेज 2002 (2) एम ए (राजनीति विज्ञान) दिल्ली यूनिवर्सिटी दौलत राम कॉलेज 2004 (3) Bachelor of Library and Information Science (BLIS) IGNOU 2005 (4) Cerficate in Computing IGNOU 2006 (5) Primary teachers Training course 2013 Delhi अनुभव- (1) Teacher ( Udayan Care (NGO) 2004, 3 साल काम किया। (2) Insurance agent Hdfc 2005 -2007 (3) Daycare day boarding teacher Eurokids playschool Delhi Mayur vihar delhi 2010- 2013 वर्तमान में- 1) उपप्रधान (बाह्य), विकलांग बल 2) अध्यापिका, (गरीब बच्चों को पढाना), निर्भेद फाउंडेशन गाजियाबाद ईमेल - sarika1980@gmail.com रुचियाँ - (1) पढ़ना, (2) बच्चों को पढ़ाना, (3) गाना, आध्यात्मिक संगीत सुनना, (4) समाज सेवा (5) ड्राइंग पेंटिंग, anchor stitch kits,art and craft , (6) सकारात्मक विचार (positive thought) पढ़ना।