लघुकथा

इंसान

मजदूरों से खचाखच भरी ट्रक मुम्बई से निकल कर मध्यप्रदेश से गुजर रही थी । भेड़ बकरियों की तरह ठूंसे ये मजदूर भीषण गर्मी का प्रकोप भी झेल रहे थे । कोरोना जैसी भयानक महामारी के साथ ही भूख की दोहरी मार सहते मजदूरों के मन में अपने गाँव , अपने परिजनों के पास पहुंचने की खुशी भी थी ।
सफर का आज दूसरा दिन था कि ट्रक में बैठे दिहाड़ी मजदूर अमृत की तबियत अचानक खराब होने लगी । खाँसी के साथ ही उसे तेज बुखार भी हो गया था । कोरोना का खौफ इंसानों की इंसानियत छीन ले गया और इंसानों से भरी उस ट्रक के मुसाफिरों ने बजाय उसकी मदद करने के हैवानों को भी शर्मसार करते हुए अमृत को ट्रक से नीचे उतार दिया । इससे पहले कि ट्रक उसे छोड़कर आगे बढ़ता , एक और मजदूर ट्रक से नीचे कूद पड़ा । लगभग बेसुध पड़े अमृत ने बड़ी मुश्किल से आँखें खोलते हुए उस मजदूर की तरफ देखा जिसने आकर बड़े स्नेह से उसके सिर को अपनी गोद में रख लिया था और नजदीक से गुजर रहे लोगों से मदद की अपील कर रहा था । अमृत ने उसे पहचान लिया। वह उसका दोस्त याकूब था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।