लघुकथा

गलती किसकी ?

उस बेतरतीब से घर में ऐशोआराम की सभी सुविधाएं मौजूद थीं लेकिन कोरोना के कोहराम के चलते सभी गतिविधियाँ जहाँ की तहाँ थम गई थी । गृहस्वामी भारी चिंता में पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए था । गृहस्वामिनी चिंतातुर नजरों से भूखे सोये हुए अपने पाँच वर्षीय बेटे को निहार रही थी । उसको करवटें बदलते देख उसका कलेजा मुँह को आ जाता । गोद में पड़ा हुआ एक वर्षीय नन्ही बिटिया भी उसकी सूखी छातियों में दूध न पाकर रो रो कर सो गई थी ।

अचानक  बेटा भूख से बिलबिलाता हुआ उठ खड़ा हुआ और माँ से कुछ खाने की माँग करने लगा ।  भूख जनित गुस्से की अधिकता से वह रसोई में जाकर कुछ खाली पड़े डिब्बों को उलटने पलटने लगा । माँ असहाय सी उसे देख रही थी । तभी गृहस्वामी उठा और क्रोध से अपनी लाल आँखें उसे दिखाते हुए बोला ,” जैसे हो वैसे पडे रहो , नहीं तो तुम्हारे कान उमेठते देर नहीं लगेगी । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।