मुक्तक/दोहा

सांसें जपती नाम उसी का

स्वारथ का संसार यहां संबंधी कौन किसी का।
रिश्ते-नाते, परिजन, परिचित बनते अंग इसी का।
पर होता कोई जिसकी यादों से मन महक उठे,
मलयज सांसें जपतीं नाम सदा हो मौन उसी का।।

घोर उदासी में भी खुशियों के स्वर मिल जाते हैं।
फूलों के पथ पर भी चल पांव कभी छिल जाते हैं।
जीवन में कभी कभी अनजाने लोगों से मिलकर,
तन-मन है महक उठे,उर में उपवन खिल जाते हैं।

सांसो में रस घोलती हवा आती जो छू तन तेरे।
खिले मुरझाई कली छाये प्रीति के बादल घनेरे।
अर्चना आराधना में अर्पित सब संपदा प्राण की,
प्रेम की पूजा में समर्पित शुभ सुवासित सुमन मेरे।

— प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com