कविता

मरुस्थल सा मैं

 

मरुस्थल सा जीवन है मेरा,पूर्णतया निराशा भरा,
फिर भी कभी-कभी कुछ ओश की बूंदों से मिलता हूँ।

सोचता हूँ , समेट लू सबको अपनी आगोश में,
मेरे गर्म एहसास से मिलकर बूंदे भाँप बन उड़ जाती है।

गर्म रेतीले मरुस्थल सा मौन जीवन के साथ चल रहा है।
कभी-कभी शाम की ठंडी हवा के मुखर झोंके से मिलता हूँ।

अक्सर सोचता हूँ,तोड़ दू सारी बंदिशे अपने मरुस्थल होने की,
बस इन गुदगुदाती ठंडी मुखर हवाओ में अविरल बहता जाओं।

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- neerajtya@yahoo.in एवं neerajtyagi262@gmail.com ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)