कविता

मैं गंगा हूं

भागीरथ के तप का हूं प्रतिफल, पतित पावन है मेरा जल ।
देवव्रत को दिया जन्म, जगत माता बनी तरणी हूं निर्मल ।

प्रचंड प्रवाह कर सके वहन, धरती में कहाँ इतना बल ।
शिव ने शिरोधार्य किया, प्राकट्य धरा में तब हुआ सरल ।

महादेव की जटा से धारा, प्रकट भई गोमुख के द्वारा ।
स्वर्गवासिनी आई धरती पर, कर उपकार धरा को तारा ।

हिमागिरी पर अठखेलियाँ करती, दिव्य नाद से हुई मुखर ।
मार्ग अपना स्वयं बनाया, चलती रही शाखा में बंटकर।

स्वच्छ सुंदर मेरी काया,  बूंद – बूंद में अमृत समाया ।
जो मुझ तक है भाव से आया, मैंने उसका हर कष्ट मिटाया ।

हर तट पर जीवन पसरा है, हर शरणागत यहाँ उबरा है ।
आंचल में मेरे मुक्ति है, मुझमे वह परमशक्ति है ।

पर इतना सुख और वैभव, मानव को रास न आया ।
माता कहकर भी वह मेरा,  दर्द समझ न पाया ।

हे धरती पुत्रों जरा सोचो, क्या तुमने मेरा हाल किया ।
मैं तो अमृत लुटाती आई, पर तुमने मुझमें जहर भर दिया ।

मुझे स्वच्छ करने चले, बच्चे मेरे कितने भोले ।
करोड़ो खर्च करने के बहाने, कह दो गंगा से कोई न खेले ।

मौन रहकर किया प्रहार,  देखो अब प्रकृति का प्रतिकार ।
स्वयं से तुमको करके दूर, मैंने फिर किया अनुपम श्रंगार ।

देखो मेरा वास्तविक रूप, जिससे तुम अनभिज्ञ रहे ।
प्रकृति स्वयं का नियम चलाती, यह बात सदा तुम्हे ज्ञात रहे ।

अब पहले सी निर्मल हूं, दर्पण सा उजला मेरा जल
मैं जो थी वही रहूंगी, मैं हूँ स्वयंसिद्धा गंगाजल ।

— गायत्री बाजपेई शुक्ला

गायत्री बाजपेई शुक्ला

पति का नाम - सतीश कुमार शुक्ला पता - रायपुर, छत्तीसगढ शिक्षा - एम.ए. , बी एड. संप्रति - शिक्षिका (ब्राइटन इंटरनेशनल स्कूल रायपुर ) रूचि - लेखन और चित्रकला प्रकाशित रचना - साझा संकलन (काव्य ) अनंता, विविध समाचार-पत्रों में ई - पत्रिकाओं में लेख और कविता, समाजिक समस्या पर आधारित नुक्कड़ नाटकों की पटकथा लेखन एवं सफल संचालन किया गया । सम्मान - मारवाड़ी युवा मंच आस्था द्वारा कविता पाठ (मातृत्व दिवस ) हेतु विशेष पुरस्कार , " वृक्ष लगाओ वृक्ष बचाओ "काव्य प्रतियोगिता में विजेता सम्मान, विश्व हिन्दू लेखिका परिषद् द्वारा सम्मानित आदि ।