कविता

जीवनचक्र

सदा होठ़ों पर मुस्कान सजी रहती थी

छोड़ कर चली गई  शायद मनचली थी।

अल्हर बचपन करती थी अठखेलियाँ

मिट गये सुहागचिन्ह आई ऐसी आँधियाँ।

होठों पर सदैव सरगम सजे रहते थे

वक्त लेकर आ गई अंतहीन सिसकियाँ।

वक्त की शाख पर फिर फूल खिलने लगा 

खोया प्यार वापस लौट कर मिलने लगा।

सारा दिन अब लेखनी से खेलते हैं

बच्चों के संग फिर  बचपन याद करते हैं।

यादों का कारवां गोल गोल घुमता रहा

बच्चों के संग फिर से बचपन लौट रहा ।

लौट कर आने लगी  सारी खुशियाँ

वक्त पूछ रहा क्योंं आया इतनी दरमियाँ।

संचेतनाएं जागृत हो सुलझाए पहेलियां

मिट रही अब तेरे मेरे बीच सारी दूरियां

आया है जो वापस लौट कर वो जायेगा

चंद वर्षों में फासला फिर से मिट जायेगा।

जीवनचक्र बस यादों  में सिमट रह जायेगा

— आरती रॉय

*आरती राय

शैक्षणिक योग्यता--गृहणी जन्मतिथि - 11दिसंबर लेखन की विधाएँ - लघुकथा, कहानियाँ ,कवितायें प्रकाशित पुस्तकें - लघुत्तम महत्तम...लघुकथा संकलन . प्रकाशित दर्पण कथा संग्रह पुरस्कार/सम्मान - आकाशवाणी दरभंगा से कहानी का प्रसारण डाक का सम्पूर्ण पता - आरती राय कृष्णा पूरी .बरहेता रोड . लहेरियासराय जेल के पास जिला ...दरभंगा बिहार . Mo-9430350863 . ईमेल - arti.roy1112@gmail.com