लघुकथा

चेक

चेक
नीतू की तबियत अचानक बिगड़ गई थी।वह अपने अकेलेपन से निराश थी।एक ही बेटा था । वह भी विदेश में रहता था।पर इसमें उसका क्या दोष था?पति को खोने के बाद उस पर एक ही धून सवार थी।बेटे को कामयाब करना।
उसने पति का अधूरा पड़ा बिज़नेस संभाल लिया था।वह किसी भी कीमत पर कामयाब होना चाहती थीं।उसे काम के अलावा किसी चीज की सुध नही थी।उसने बेटे को हॉस्टल में दाखिल करवा दिया।वह अपने बेटे से मिलने तक नहीं जाती थी।जब भी उसकी तबियत खराब होती।वह हॉस्टल के अधिकारियों को चेक भेज देती,ताकि वह उसका इलाज करवा सके।बेटा बड़ा होता जा रहा था।वह माँ का साथ चाहता था।पर नीतू को अपने काम के सिवाय कुछ भी दिखाई नहीं देता था। वह बेटे के लिए सुख-सुविधाएं जुटाने में लगी थी।वह बेटे को हमेशा व्यस्त रखती थी।जब बेटे ने विदेश में पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर की, तो वह सहज ही मान गईं।उसने खर्च का चेक बेटे को थमा दिया।बेटा साल दर साल तररकी करता गाया।पढ़ाई पूरी होने के बाद उसने विदेश में ही नौकरी कर ली।वह चाहता था कि माँ उसे अपने पास बुला ले।पर ऐसा कुछ नहीं हुआ।नीतू उसके फैसले पर खुश थी।बेटा जब भी कोई इच्छा करता।वह उसे चेक भेज देती।पर आज जीवन की अन्तिम संध्या पर, उसे बेटे की बहुत जरूरत थी।वह चाहती थी, बेटा हमेशा के लिए लौट आए।उसके पास रहे।बेटे ने मैसेज कर दिया, माँ आप अपना इलाज करवा लें। मैंने आपके लिए चेक भेज दिया है।आज नीतू अपने द्वारा किए गए कर्मों को अपने ही पास लौटते हुए देख रही थी।वह बिस्तर पर पड़ी सोच रही थी।उसने इस कामयाबी को पाने के लिए ,क्या खो दिया था।?चेक हवा में
फड़फड़ा रहा था।
राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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राकेश कुमार तगाला

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