इतिहास

हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव

हिंदू साम्राज्य दिनोत्सवम ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष त्रयोदशी का यह दिन कोई सामान्य दिन नहीं था  मुगलों अफगान तुर्कों के अत्याचार भरे शासन के कई दशक बीत जाने के बाद एक हिंदू सम्राट के राज्याभिषेक का स्वर्णिम अवसर है ऐसा समय जब तुर्कों से युद्ध का विचार भी करना, देश में अपराध माना जाता था। राज्य धन संपदा को समाप्त करने वाला माना जाता था। राज्य के वैभव और यश व कीर्ति से समझौता करना माना जाता था। ऐसे प्रतिकूल समय में छत्रपति शिवाजी का राज्याभिषेक, मुगलों व तुर्कों के शासन के कब्र में अंतिम कील ठोकने के समान था। देश में यह दिन अनन्य उत्साह से मनाया जा रहा था, कई दशकों बाद एक हिंदू राजा अपने स्वाभिमान से एक बड़े भूभाग पर राज्य कर रहा था, उसका क्षेत्र तो महाराष्ट्र आंध्र प्रदेश तक सीमित था किंतु शिवाजी राजे की नजरें दिल्ली पर टिकी थी, कई मराठा सरदार मुगलों के चापलूस बने हुए थे इसी कारण यदा-कदा शिवाजी को परेशानियों का सामना भी करना पड़ा। शिवाजी का काल हिंदू साम्राज्य का स्वर्णिम काल रहा, संघर्ष अवश्य हुए परंतु विजय श्री हिंदुत्व के पक्ष में रही। इसका महत्व तब और बढ़ जाता है जब देश में औरंगजेब जैसे क्रूर आक्रांता का शासन हो, जो बार-बार शिवाजी के चुनौती देने के बाद भी उनके सामने नहीं आता, क्योंकि औरंगजेब बहुत शातिर, षड्यंत्रकारी, दुष्ट नायक था, वह स्वयं को युद्ध में झोंकने की जगह सेना और सेनापतियों को भेजना सही समझता था, फिर मुगल शासन भारत के बड़े भूभाग से कर वसूली कर रहा था इस कारण उसका अर्थकोश अन्य राज्यों की तुलना में बहुत था, सेना पर अत्यधिक खर्च किया जाता। हिंदुओ का दिया गया कर ही उनकी गुलामी को मजबूत कर रहा था। इस तरफ शिवा जी ने भी छापामार युद्ध नीति सिख ली थी, राजपूत इतिहास में किए गए छल और धोखों से शिवाजी परिचित थे, मुस्लिम आक्रांता सदैव धोखे से हमला करते है, झूठ बोलकर कैद करते है, वादा तोड़ते है यह बात शिवाजी अच्छी तरह समझ चुके थे, इसी कारण उन्हें इस सदी का पूर्ण योद्धा माना गया। उनके राज्याभिषेख का मतलब था पूरे भारत वर्ष को यह सन्देश की अब हिन्दू राजा स्वयं डटकर खड़े हो सकते है, अब तुर्कों, पठानों, मुगलों के दिन बीत गए, गुलामी के घनघोर अंधेरे में शिवाजी का राज्याभिषेख उसी तेज पुंज के समान था जो अंधेरे को चीरकर अपना साम्राज्य स्थापित करता है।
शिवजी के राजगढ़ किले में हुए राज्याभिषेख से अन्य कई योद्धा भी स्वराज के लिए प्रेरित हुए। इनमें से एक छत्रसाल भी शिवाजी के साथ लड़ने को प्रस्तुत हुआ, जिसे शिवाजी ने बुंदेलखंड के अपने राज्य को सुरक्षित करने और वहीं से स्वराज का बिगुल बजाने के लिए निर्देशित किया। हम सभी जानते है छत्रसाल के पराक्रम से औरंगजेब भी आतंकित था, अकेला छत्रसाल हि ऐसा राजा हुआ जिसे मुगल कर चुकाते थे। फिर कोंडवाना के योद्धा ताना जी मालसुरे को भी हम सभी जानते है, बेटे की शादी छोड़कर शिवाजी के एक आदेश पर दुर्ग पर चढ़ाई कर दी। दुर्ग तो जीता किन्तु स्वयं के प्राण अर्पण कर दिए। योधाओं के स्मरण पर बाजीराव को कौन भूल सकता है, शिवाजी से ही प्रेरणा लेकर श्रीमंत बाजीराव बलाड़ संकल्पित भाव से मुगलों से टकराये, उनके वार का मुगलों के पास कोई जवाब नही था। बीजापुर के नवाब तो घुटने टेक चुके थे, यदि बाजीराव कुछ वर्ष और जीवित रहते तो दिल्ली पर भी भगवा परचम फहरा रहा होता। ऐसे अनेक वीर शिवाजी से प्रेरित होकर स्वराज के आहवान यज्ञ में समिधा सम जले। तब जाकर हिन्दू साम्राज्य दिनोत्सव का महत्व हम हिन्दुओं के लिए इतना बढ़ जाता है। हर युवा को शिवाजी से प्रेरणा लेकर अपना जीवन जीना चाहिए।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश