कविता

शीर्षक -तेज़ाब से वार

बोझिल तन आहत मन
मौन व्रत वह धरती है।
तेजाब पड़ा है श्राप यही
साँस गले का फाँस बनी।।

दर्द इतना की धीरज खोती,
देख अपना ही बिंब रोती ।
पूरा जग है रुठा रुठा ,
पतझड़ सा सूखा उजड़ा ।।

रूप यौवन
सब कुछ खोया ,
वीभत्स रूप
देख दर्पण रोया।।

पाषाण हृदय वो दिल
देने दर पर आया था,
अस्वीकृति किया तो
दुर्गति देकर भागा था ।।

स्वार्थी इतना ओह,
तेजाब से झुलसाया था ।
मृत्यु की शरशैय्या पर,
इच्छा विरूद्ध पहुँँचाया था ।।

वजूद का किया वीभत्स चीरहरण
वाह दु:शासन वाह रे दुर्योधन।।
तिल -तिल सी रोज मरती है।
घुटन बीच घुटती फड़फड़ाती है।।

तेजाब की पँजों में कैद ,
बिखरती और सिहरती है।
पल-पल लूटी मानवता,
नृशंस मन की क्रूरता।।

ईश्वर तो प्रेम का वरदान है फिर,
प्रेम के छद्म वेश में कैसा शैतान है?
पैशाची आ धमका तेजाब लेकर,
लज्जा ना आई ,भागा चेहरा जलाकर।।

छिछला रूप दिखाकर ,
भागा झुलसाकर।
शर्मनाक कुकृत्य
मानवता को धिक्कार कर।।

प्यार तो दैवीय प्रेरणा
एक सौगात है।
जीवन का रँगीन ,
खूबसूरत ख्वाब है।।

कर्तव्यों के बीच उलझी, उड़ती
खोजती थी चहक,थोड़ी सौंधी महक,
चिड़ियाँ थी वह एक घरौंदें की,
अँगारे की दहक ने काटे पँख परिंदे की ।।

खोखली हँसी हँसकर,
वह शिकारी चला गया।
विष वृष्टि से वजूद हिला,
उजला प्रकाश ले गया ।।

सिहरी- सिहरी ,
सिकुड़ी- सिकुड़ी ।
उजड़ी -उजड़ी,
बिखरी बिखरी।।

कुछ कर पाने को
अब वह सँभलती ।
मृतक नहीं थी फिर से
जीने को मचलती।

सटकी हुई, अटकी हुई
खुशियों को खोजती है।
भूल भुलैया में अक्स अपना ,
फिर से ढूँढती, फुदकती है।।

— अंशु प्रिया अग्रवाल

अंशु प्रिया अग्रवाल

Maths teacher from Muscat Oman