बाल कविता

अपनी धरती

 

कहते हैं सब कि … अपनी “धरती”
रहने लायक अब बची ही नहीं ।

तो… हे कोलंबस ढूंढो नई दुनिया
हो चारों तरफ जिसमें हरियाली ।
प्रकृति का वास हो जिसमें
फैली हो… चहुंओर खुशहाली।।

“बढ़ता धुँआ बढ़ती आबादी
और व्यर्थ में पानी कि बर्बादी” –
की चिंता रहित रहित ढूंढो संसार
जहाँ बसाएंगे घरबार।।

पर… पर क्या हम उस दुनिया को भी
हरा भरा रख पाएंगे ?
विकास की अंधी आंधी से,
क्या उसको बचा पाएंगे ?

तो… तो क्यों न हम, इस दुनिया को ही
नव दुनिया में तब्दील करें ।
कल (बीता हुआ ) की छोड़ें, कल (आने वाला) की सोचें
और आगे की फ़िक्र करें। ।

तो… तो आओ मिल कर सब यह प्रण लें
प्राकृतिक संसंधानों का न करेंगे संहार।
प्रकृति माता है जननी सबकी
भूल कर भी इस पर, न करेंगे प्रहार।।

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed