अनंत के दोहे
ज्ञानी उसको मानिए, समरुप करे प्रकाश
जैसे चंदन वृक्ष से, चहुँ दिग फैले वास
जग में नर वह बाँटता, जो है उसके पास
मोरी से दुर्गंध है, चंदन करे सुवास
रस्सी इतनी तानिए, कहीं न जाये टूट
साधो उतनी देह को, प्राण न जाये छूट
दोहन इतना कीजिए, लात न मारे गाय
लात निसर्ग बड़ी विकट, अनंत कवि की राय
मानव कुछ गुण सीख लो, ज्यों थेथर के फूल
रहे प्रफुल्लित सर्वदा, विकट घड़ी को भूल
*अनंत पुरोहित ‘अनंत’*