कविता – शब्दों की शक्ति
खंजर जैसे पैने लफ़्ज न रखना अपने कोष में
न जाने कब चल जाएँ ये नासमझी व जोश में
बरसों के रिश्तों को ये इक पल में काट के रख देंगे
और खींच ले जायेंगे बर्बादी के आगोश में
शब्दों का तिलिस्म है सारा गीता और कुरआन में
सूत्रधार थे शब्द यही महाभारत के रणघोष में
लेखक के संग पाठक भी तब ही हंसता रोता है
मीठे लफ़्ज उतारे गर जो कलम से लेखक होश में
मीर ओ ग़ालिब बच्चन सबको शब्दों ने बनाया है
लफ़्ज ही शामिल रहे हैं यारो जयचंदों के दोष में
शब्दों की गरिमा व शक्ति जिसने भी पहचानी है
सावन भादों उसके दामन रहे हैं माघ व पौष में
चयन सीख लो शब्दों का उन्नति शिखर पे चढ़ने को
मौन धार कर पतन से बचना जब आओ आक्रोश में
शब्दकोश से अभी हटा दो पीड़ादायक शब्दों को
फिर देखना डूबा जीवन सुख शांति संतोष में
गर शब्दों की महत्ता को तुमने कर स्वीकार लिया
दुनिया साथ खड़ी पाओगे जीवन के जयघोष में
— अशोक दर्द