ध्वज तिरंगा हाथ लेकर इक हवा फिर से चलेगी
सिंधु गंगा संग यमुना
धार पय रस की बहेगी
ध्वज तिरंगा हाथ लेकर
इक हवा फिर से चलेगी
पुत्र भारत के प्रतापी
मानना जग को पड़ेगा
हों सहस्रों मुश्किलें पर
झूठ से अब सच लड़ेगा
सभ्यता संस्कार वाली
इस धरा पर अब पलेगी
ध्वज तिरंगा हाथ लेकर
इक हवा फिर से चलेगी
हरित दूर्वा रक्त किसलय
इस धरा पर अब सजेगी
हिंद के बेटे चलेंगे
दुंदुभी नभ में बजेगी
दानवी संस्कार पापी
शोक विपदा अब टलेगी
ध्वज तिरंगा हाथ लेकर
इक हवा फिर से चलेगी
लहर सरिता अग्नि में भी
नाव लेकर अब बढ़ेगा
जानले अब ये जमाना
केसरी सूरज चढ़ेगा
पाप को मिलकर पछाड़ो
रात काली ये ढलेगी
ध्वज तिरंगा हाथ लेकर
इक हवा फिर से चलेगी
छोड़ मन की हीनता को
झूठ से तू कब डरा है
अंश तुझ में राम वाला
वीर रस तुझ में भरा है
सिंधु को जो बाँध लेती
राम की सेना चलेगी
ध्वज तिरंगा हाथ लेकर
इक हवा फिर से चलेगी
दूर हो संस्कार से निज
आधुनिकता क्यों फबेगा?
पूर्व से पश्चिम चलेगा
जान ले तब तू डुबेगा
लौट आ पूरब दिशा में
भोर की लाली खिलेगी
ध्वज तिरंगा हाथ लेकर
इक हवा फिर से चलेगी