कविता

बेजुबान हथिनी

प्रेम, दया, करुणा रखने का
 तुम कैसा पाठ पढ़ाते हो
या फिर आत्म क़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
हे मानव! तेरी निष्ठुरता से
ये मानवता शर्मसार हुई
जितने कुछ भी पुण्य कर्म थे
वो सारी पुंजी बेकार हुई
मेरे सृजित सभी जीवो में
श्रेष्ठ कैसे कहलाते हो
या फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
बेजुबान हथिनी को तड़पता
देख ह्रदय सबका रोया
हे मानव ! तुम्हारे अत्याचारों ने
दो दो जीवो को खोया
समझ नहीं आता है खुद को
कैसे इंसा बतलाते हो
या फिर आत्मकसीदे गढ़के
खुद को श्रेठ बताते हो
फल में रखकर के विस्फोटक
कैसा निर्मम गर्भपात किया
प्रकृति का रक्षक कहलाकर
प्रकृति पर ही आघात किया
समझ नहीं आता मानवता
कैसी तुम सिखलाते हो
या फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
गर बचा नहीं सकते हो जीवन
तो लेने का अधिकार नहीं है
ये कृत्य तुम्हारे देखके लगता
ह्रदय तो है पर प्यार नहीं है
तुम बड़े बड़े शिक्षा केंद्रों में
क्या बर्बरता सिखालते हो
और फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
ईश्वर का ये नियम है प्यारे
जिसने जो बोया वो काटा है
सबका रखता है हिसाब वो
कर्मो को लिखता विधाता है
प्रश्न कर रही हूँ मैं प्रकृति
क्यों तुम जीवो को सताते हो
और फिर आत्मक़सीदे गढ़के
खुद को श्रेष्ठ बताते हो
— ऋषभ तोमर

ऋषभ तोमर

अम्बाह मुरैना