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बिहार-बंगाल में गोरैया पक्षी

कटिहार- मालदा रेलखंड पर कुमेदपुर रेलवे स्टेशन है, मैंने 2 साल पीछे देखा था, वहाँ हजारों की संख्या में गोरैये रह रहे हैं, अभी भी है ! भागलपुर जंक्शन में भी देखने को हमें इस फुतकी गोरैये के संरक्षण की दरकार है। सरकार के आसरे पर नहीं, अपितु सामाजिक सरोकार को जगाकर। कुमेदपुर रेल जंक्शन के बाद भागलपुर रेल जंक्शन के छतों के कोटरे में भी गोरैया का खोता व घोंसले दिखाई देते हैं । स्टेशन परिसर में इस नन्हें परिंदों का गुलजार है।

स्टेशन पोर्टिको के ठीक सामने के एक घना पेड़ पर सैकड़ों गोरैयों का आशियाना है। सुबह-शाम सूर्यास्त की लालिमा के साथ स्टेशन कैंपस में गोरैयों के टिक-टिक से व उनके चहचहाने वातावरण में संगीत घोल देता है । स्टेशन परिसर के रहवासी रेलकर्मियों ने कहा कि स्टेशन परिसर के गार्डेन में सजावटी पेड़-पौधे लगाए गए थे, वो काफी बड़े हो गए हैं। इसके पत्ते बहुत घने हैं, उसपर अमलतास की लत्तियाँ भी चढ़ गई है, जोकि सजावटी पेड़-पौधे पर एक आवरण लिए हो गया है, यही कारण है कि गोरैया अपने घोंसले को यहाँ बनाकर ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं ! भागलपुर के पक्षी वैज्ञानिक बताते हैं, प्रत्येक शाम गोरैया आते हैं, अपने-अपने रैन-बसेरों में रात बिताते हैं, फिर सुबह भोजन-पानी के फिराक में कलरव करते हुए फुर्र उड़ जाते हैं।

वहां इसलिए आती हैं कि उसे रात बिताने के लिए झाड़ीदार पेड़ चाहिए। आसपास के आम, पीपल, बबूल, जामुन इत्यादि पेड़ों पर भी गोरैया घोंसले बनाकर रहते हैं । भागलपुर जंक्शन के पीछे और दक्षिण दिशा की बस्ती में भी गोरैया की तादाद है, जहाँ पक्के मकान की संख्या कम है, जहां भी गोरैया रहते हैं और महीन दाने चुगते हैं । यदि घर में घोंसला बनाई, तो वे सहज महसूस करेंगे । खिड़कियों, छज्जे, छतों पर, आँगन, दरवाजों पर उनके लिए दाना-पानी रखने से गोरैया चिक-चिक करते आएंगे।

कड़ी धूप में पानी नहीं मिलने से गोरैया मर-खप जा रही हैं । वे घर पर छज्जे में रखे पुराने जूट, कूट के डिब्बों, मिट्टी के बर्तनों, जूट के टंगे थैलों, बेकार पड़ी सूप, टोकरी इत्यादि जगहों में भी घोंसले बना लेते हैं।कटिहार, बिहार के मनिहारी, नवाबगंज में भी गोरैया देखने को मिलते हैं। एक स्थानीय पक्षीप्रेमी श्री काली प्रसाद पॉल बताते हैं कि गोरैया पालतू चिड़िया है। वे तो रोज गोरैयों को दाना-पानी देते हैं । इस माहौल में वे बड़ी शिकारी पक्षियों से खुद को सुरक्षित महसूस करती हैं। वे अकसर मेरे मिट्टी और फुस के घरों के बीच बनी जगहों में अपने घोंसले बना लेती थी या आसपास के पेड़ों पर अपना ठिकाना तलाश लेती थी, किंतु अब पक्के मकानों और घटते पेड़ों के चलते उनके लिए घोंसले बनाने के लिए कोई जगह सुनिश्चित नहीं बची है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.