गीतिका/ग़ज़ल

बेव़फाई का ख़िताब

अपनेपन का हिसाब भी वो बेहिसाब दे गयी
चंद खुशियाँ दीं लेकिन गम लाज़वाब दे गयीI
साथ-साथ जीने मरने के सजाए थे जो सपने
तोड़कर के वो सारे के सारे ही ख्वाब दे गयीI
सीखकर वो मुझ से इश्क़ की सब बारीकियाँ
मुझे ही वो इश्क़ सिखाने वाली किताब दे गयीI
मैं तो अब भी करता हूँ उसी से सच्ची मोहब्बत
वो भले ही मुझको बेव़फाई का ख़िताब दे गयीI
मोहब्बत की बीमारी भी लाईलाज है ऐ निर्मल
डाक्टरों से पहले तो धड़कन ही जबाब दे गयीI
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616