सामाजिक

सुशांत जैसी शख्सियत का यूँ जाना अखरता है मानव जाति को

चिट्ठी ना कोई संदेश, इस दिल को लगा के ठेस कहाँ तुम चले गए….? हर दिल अजीज, उम्दा अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत सर आज आप हमारे बीच नहीं हैं ख़बर सुनने के बाद ना जाने कितनी बार मेरी आँख नम हुई गला रुंध सा गया ! मेरी मन: स्थिति कुछ भी लिखने की नही है लेकिन आपकी इस आत्महत्या ने मानव जाति के लिए जो सवाल छोड़ें हैं उसको लिखना भी जरूरी लग रहा है! एक पूरा जीवन जो इस धरा पर आने में सतरंगे सपनों से लेकर नौ माह का खूबसूरत समय लेता है,अचानक ऐसी कौन सी विवशता,लाचारी,दुख,दर्द इंसान को घेर लेता है कि जिंदगी जीने से ज्यादा मौत प्रिय लगने लगती है! हर कोई सवाली है इस वक्त कि आखिरकार ऐसी क्या पीड़ा ऐसी कौन सी मानसिक विचलन मन में रही होगी कि सुशांत सिंह राजपूत जैसी शख्सियत ने मौत को गले लगाया? क्यों अचानक अपनों को रोता विलखता छोड़ कर इंसान चल देता है अज्ञात में सुख खोजने! यह कहीं लिखा तो नहीं कि मौत को गले लगा लेने के बाद सारी समस्याओं का अंत हो जाएगा या समस्याएं सुलझ जाएंगी? गरुड़ पुराण में आत्महत्या को पाप माना गया है और असमय प्रकृति के नियम को तोड़ना पाप के दायरे में आता ही है! आखिर कौन सी कमी थी आपकी जिंदगी में सुशांत सर जिस कमी को आप पूरा ना कर सके और असमय काल के गाल में समाहित होना आपको जायज लगने लगा? एक पल के लिए ठहर कर नही सोचा आपने अपने माता -पिता, भाई बहन परिवार दोस्त और हम जैसे लाखों दर्शकों के बारे में? आपका यूँ रुखसत होना मानव जाति के लिए यह प्रश्न खड़ा कर रहा है कि आत्महत्याओं के बढ़ते आंकड़ों से निकलती आह को अनसुना नही किया जा सकता! यदि हमारे आसपास कोई भी व्यक्ति हताशा महसूस कर रहा है,हीनता महसूस कर रहा है अथवा वो बातचीत के दौरान जिंदगी से ऊब जाने की बात करता है तो हमें उसकी बातों को गंभीरता से लेने की जरूरत है! हमारी पहली प्रतिक्रिया यह होनी चाहिए कि हम उसकी समस्या का समाधान ढूँढ़ें कोशिश करें कि उसको अकेला नहीं छोड़ें? जो लोग आत्महत्या के बारे में सोचते हैं वो आत्महत्या करने से पहले एक ऐसे इंसान की तलाश में अवश्य रहते हैं जो उनका दर्द समझ सके उनकी बात सुन सके दुख दर्द साझा कर सके! अगर हमारे आसपास कोई ऐसा व्यक्ति जो बिलकुल अकेला रहना पसंद कर रहा हो नकारात्मक बातें करने लगा हो तो एक इंसान होने के नाते हमे उसकी भावनाओं को समझना है और जो बातें वह कर रहा है उसे उसकी दृष्टिकोण से भी देखना और समझना है और यथासंभव प्रयास यही करना है कि वो अपनी आत्महत्या वाली मन:स्थिति से बाहर निकल सके! जिंदगी अनमोल है और यह सिर्फ एक बार मिलती है यदि हम यह समझने और समझाने में सफल हो गए तो आत्महत्याओं में अंकुश अवश्य लगेगा!
— आशीष तिवारी निर्मल

*आशीष तिवारी निर्मल

व्यंग्यकार लालगाँव,रीवा,म.प्र. 9399394911 8602929616