कविता

कोरोना

चर अचर इस जगत मे
जीवन क्या और मृत्यु क्या है
गीता मे वृणित किया है
वस्त्र मैले हो गये जो
आज नव धारण किया है|
क्यों डरूँ किससे डरूँ
सब काल के आधीन हैं
कर्म करना धर्म अपना
फल की इच्छा हीन है|
बस यही तो सार कान्हा
कुरूक्षेत्र मे समझा रहे
बुद्धि को भी कर्म के संग
लेकर चलना बतला गये|
हे कोरोना हम भारतीय
डरते नही हम मौत से
संस्कारों मे जिया है
कैसे बचें प्रकोप से|
विनम्र हो प्रणाम करना
यह हमारी संस्कृति है
यज्ञ हवन की अवधारणा
यह हमारी प्रवृति है
कोई अगर बिमार हो
अथवा गन्दगी धारण करे
दूर उससे बचकर चलना
यह हमारी सन्मति है|
हो कहीं पर मृत्यु अगर
या नव शिशु का आगमन
हम लगाते सूतक वहाँ
इतना हमको ज्ञान है|
जानते हैं कीटाणुओं से
मुक्त कैसे हम रहें
शमसान मे हम नीम चाबें
फिर स्नान कर वस्त्र बदलें|
हाथ धोना मुख प्रक्षालन
बचाव की अवधारणा है|

— अ कीर्ति वर्द्धन