कविता

विजय वरण का मंत्र

विजय वरण का मंत्र निहित है
आत्म शक्ति में और लगन में
है असफ़ल होने का मतलब
कमी रही है श्रम साधन में।
जैसी करनी वैसी भरनी
विधि का सकल विधान अटल है
कामयाब या असफ़ल होना
मानव की करनी का फ़ल है।।

कठिन समय में करते हैं जो
चिंता छोड़ चित्त में चिंतन
देता नयी दिशा जीवन को
उसके, वैचारिक परिवर्तन।
जो जीवन में कर्म साधना
लक्ष्यों के अनुसार करेगा
प्राप्त लक्ष्य तय अपने वो जन
निश्चित ही हर बार करेगा।।

नही विनय पर कर्महीन की
और नही अपनी मंशा पर
विधिना भाग्य बदलती केवल
कर्मदेव की अनुशंशा पर।
ग्रंथ पुरातन यही बताते
यही बुज़ुर्गों का अनुभव है
मन का सुख या भौतिक वैभव
कर्मयोग से सब सम्भव है।।

— सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.