लघुकथा

रोशनी की दस्तक

”कोरोना, कोरोना, कोरोना——
हर जगह कोरोना,
रेडियो पर कोरोना,
टी. व्ही, पर कोरोना,
समाचारों में कोरोना,
बातों में कोरोना,
मुलाकातों में कोरोना,
कोरोना और संक्रमण के सिवाय अब और बचा ही क्या है?’ पल भर में कितना कुछ सोच गया पंकज!

”हर पांचवें व्यक्ति को कोरोना संक्रमण का खतरा! स्टडी में दावा.” लो आ गए एक और महाशय डराने!

”कोरोना यानी ऑक्सिजन की कमी! ऑक्सिजन के अभाव में सांस लेना दूभर! ऑक्सिजन ही जीवन है! वायुमंडल में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ जाए, तो शायद कोरोना पर नियंत्रण पाया जा सके!” मंथन जारी था.

”लेकिन ऑक्सिजन बढ़ेगी कैसे? यही तो यक्ष प्रश्न है! हमने खुद वृक्षों को काटना और जंगलों को जलाने का सिलसिला जारी रखा हुआ है.” सोच का सागर गहराता जा रहा था.

”हे प्रभु, तू ही हमें सद्बुद्धि दे दे या फिर ऑक्सिजन की मात्रा में बढ़ोतरी कर दे.” हर ओर से निराश पंकज ने विनय का सहारा लिया.

तभी उसके सामने एक समाचार आ गया-
”मंगल ग्रह के वायुमंडल में पहली बार मिले चमकती ऑक्सिजन के सबूत!”

पंकज के मन में रोशनी की किरण ने दस्तक दे दी थी. उसका आत्मबल जाग गया था.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “रोशनी की दस्तक

  • लीला तिवानी

    प्रार्थना ईश्वर को नहीं बदलती, लेकिन वह प्रार्थना करने वाले को बदल देती है

  • लीला तिवानी

    सब तरफ से निराश व्यक्ति आखिर प्रभु की शरण में जाता है, तब रोशनी दस्तक देती है और मनुष्य का सोया हुआ आत्मबल जाग उठता है. सुकून पाकर वह आगे बढ़ने के लिए प्रस्तुत हो जाता है.

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