कविता

मौसम है सुहाना

आसाढ मे सखी .
मनभावन है मौसम
बादलों के  मखमली है रंग
बरसाते रिमझिम फुहारें
अमृत रस बरसातें बदरा
 गर्जन करते दामिनी संग
शीतल होती हिय की प्यास
मंद मंद मुस्काती धरती
खामोशी का आचँल ओढ़े
सहेजती जल की बूंद -बूंद
देती हमको संदेश
जल की शक्ति पहचानो
यही है जीवन ……..।
इस की बर्बादी को रोक
 बचानें का उपाय करें
जल के संग्रहण कर
अमूल्य जल संचित करें
वर्ना होगे प्यासे कंठ
ना रहेगा जीवन
  होगा तपिश से  हाहाकार ….
आसाढ़  सूखा…
ना पड़ेगी सावन मे रिमझिम फुहार
ना कोई सूखे पेड़ ,उपवन
चाह रखते हो
खेतो मे अंकुर फूट जायें
हो खेती हरी भरी
किसान हो जायें खुशहाल
अपनी गलती मानों
ना काटों वन संपदा
प्रर्यावरण के बचाव करो
जानो बादल ,से पेड़
पेड़ से बादल
दोनो से  है धरती का गहरा रिश्ता
समय पर होगी जल की वर्षा समय से  बदलेगा मौसम
धरती रहेगी सदा खुशहाल ………..।
— बबिता कंसल 

बबीता कंसल

पति -पंकज कंसल निवास स्थान- दिल्ली जन्म स्थान -मुजफ्फर नगर शिक्षा -एम ए-इकनोमिकस एम ए-इतिहास ।(मु०नगर ) प्राथमिक-शिक्षा जानसठ (मु०नगर) प्रकाशित रचनाए -भोपाल लोकजंग मे ,वर्तमान अंकुर मे ,हिन्दी मैट्रो मे ,पत्रिका स्पंन्दन मे और ईपुस्तको मे प्रकाशित ।