गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हम ठहरते नही फायदा देखकर।
ये कदम रुकतें हैं गमजदा देखकर।।
यूं तो आँखों में बसती है सूरत तेरी।
चाँद फीका लगे कायदा देखकर।।
लोग कहने लगे आजकल बेवफा।
क्यूं लगी जान प्यारी बला देखकर।।
जिनके ख्यालों में खुश्बू बसी है मेरी।
क्यूं ठहरते वो फिर मैकदा देखकर।।
याद आती रही मुझको शामों सहर।
नींद भी उड़ गयी रास्ता देखकर।।
जब कजा ने पुकारा पनाहों में आ।
रूह कांपी बदलती हवा देखकर।।
आज खुश हैं बहुत दिल ही दिल में सनम।
मुस्कुरा दिये वो आइना देखकर।।
— प्रीती श्रीवास्तव

प्रीती श्रीवास्तव

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