गीत/नवगीत

हर युग में, मैं छली गई हूँ

काली, दुर्गा, सरस्वती नहीं हूँ, मैं साधारण सी नारी हूँ।
हर युग में, मैं छली गई हूँ, प्रेम से कहकर प्यारी हूँ।।
जिम्मेदारी, मुझ पर डालीं।
काम सौंप दिया, कह घरवाली।
अधिकार सब, रखे पुरूष ने,
कर्तव्यों की, थमा दी, प्याली।
संस्कृति का भी भार बहुत है, थामो तुम, मैं हारी हूँ।
हर युग में, मैं छली गई हूँ, प्रेम से कहकर प्यारी हूँ।।
पूजा मुझको, नहीं, चाहिए।
थोड़ा सा, सम्मान चाहिए।
मन की कहे, मन की सुने,
ऐसा पति का प्यार चाहिए।
संस्कार, नैतिकता, लज्जा, थामो तुम, मैं मारी हूँ।
हर युग में, मैं छली गई हूँ, प्रेम से कहकर प्यारी हूँ।।
परमेश्वर नहीं, पति चाहिए।
स्वर्ग नहीं, कुछ हँसी चाहिए।
निर्णयों में, भागीदारी दे,
नर की ऐसी, मति चाहिए।
प्रेम, विश्वास, सम्मान मिले बस, फिर देखो, मैं थारी हूँ।
हर युग में, मैं छली गई हूँ, प्रेम से कहकर प्यारी हूँ।।

डॉ. संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी

जवाहर नवोदय विद्यालय, मुरादाबाद , में प्राचार्य के रूप में कार्यरत। दस पुस्तकें प्रकाशित। rashtrapremi.com, www.rashtrapremi.in मेरी ई-बुक चिंता छोड़ो-सुख से नाता जोड़ो शिक्षक बनें-जग गढ़ें(करियर केन्द्रित मार्गदर्शिका) आधुनिक संदर्भ में(निबन्ध संग्रह) पापा, मैं तुम्हारे पास आऊंगा प्रेरणा से पराजिता तक(कहानी संग्रह) सफ़लता का राज़ समय की एजेंसी दोहा सहस्रावली(1111 दोहे) बता देंगे जमाने को(काव्य संग्रह) मौत से जिजीविषा तक(काव्य संग्रह) समर्पण(काव्य संग्रह)