धर्म-संस्कृति-अध्यात्मलेख

क्या हिन्दू है सबसे उदारवादी सहिष्णु धर्म ?

आदरणीय मित्र प्रदीप,
संस्पर्श नमन् !
जब आप खुद ‘प्रदीप’ हैं, तो आपको स्वयं सहित दूसरे के घरों को भी उज्ज्वल करने चाहिए । कितने को सहयोग किया है, आपने ! जो आप प्रदीप कहलाते हैं । प्रदीप तो प्रकाशित करता दीपक होता है, फिर कैसे और क्यों प्रदीप हो गए आप ?
कभी आपने अपनी माँ-पिता और अपना तथा भाई-बहन का DNA टेस्ट कराया ? आपने होश संभालते ही आपको बताया गया की ये आपके पिता हैं, माता हैं या भाई-बहन हैं ! इसपर कितनी बार आपने प्रश्न किया ? कितनी बार शक किया ? ? रिश्ता विश्वास पर टिका है । घर पर पत्नी को छोड़कर 8 घंटे लोग ड्यूटी पर रहते हैं ! पति-पत्नी के आपसी विश्वास ही रिश्ते को प्रगाढ़ करते हैं । आपको ‘दुर्गा’ या ‘माँ दुर्गा’ के बारे में आस्था नहीं है तो मत रखिये , लेकिन इनपर किसी के आस्था पर कुठाराघात भी आपके द्वारा जनित प्रताड़ना माना जाएगा ! वैसे भी हमारे समाज में नारी को सम्मान और देवी की नज़र से देखी जाती है । हिन्दू धर्म की विवाहित स्त्रियाँ अपने नाम के साथ ‘देवी’ जोड़ती हैं । चलिए, दुर्गा वो ही सही !
उदाहरणों के आलोक में ‘दुर्गा’ एक प्रतीक -भर है, जैसे- द्रोणाचार्य की प्रतिमा-प्रतीक मानकर एकलव्य जहां अर्जुन से भी आगे के धनुर्धर हो गए । महिषासुर भी प्रतीक है । यदि महिषासुर शूद्र है, तो दुर्गा भी शूद्र है । गो. तुलसीदास ने नारी को भी शूद्र की कोटि में रखा है । एक शूद्र की प्रशंसा, दूसरी की निंदा शोभनीय हैं क्या ? अबला कहलाने वाली नारियों को आप जैसे लोग ही ‘सबला’ बनाने के पक्षधर नहीं हैं । पता नहीं, एक बार किसी की पत्नी अपने पति को ‘सेक्स’ करने नहीं दे, तो ‘मौगा’ टाइप के लोग ‘जोरू के गुलाम’ हो जाते हैं, तो मर्द नाम से प्रताड़ित हुए पति अपनी पत्नी को कुलटा कहने लग जाते हैं ।
स्वामी विवेकानंद ने कहा है- जन्म से सभी मनुष्य शूद्र हैं । ‘जनेऊ’ के बाद ही ब्राह्मण ‘द्विज’ कहला पाते हैं , भले ही ये ‘जनेऊ’ ढकोसला मात्र अब रह गया है । अब यदि ब्राह्मण भी मांस, मछली, अंडा इत्यादि भक्षण करते हैं, तो वह ब्राह्मण कहाँ रह पाया । यहां राक्षस या असुर या महिषासुर आदि से तात्पर्य मांसाहार जो करता है – से है । अब जान लीजिये , कौन राक्षस हैं या कौन असुर  कहलायेंगे ।
अगर एक मुसलमान अपने धर्म के प्रति कट्टर हो सकते हैं , तो हम क्यों अपने धर्म को टुकड़े में बंटता देख खुद मदारी बने । माननीय उच्चतम न्यायालय ने भी कई बार कहा है कि हिन्दू एक संस्कृति का नाम है । ….और यह सच है, दुनिया में सभी संस्कृतियों में सबसे उदार हिन्दू हैं । आप मुस्लिमों के इसतरह के कटाक्ष कर हिम्मत तो जुटाइये, ऐसा नहीं कर सकेंगे, आप । उदारमना सिर्फ हिन्दू है । बौद्ध धर्म से भी आगे और कभी स्तूप जाकर उनके बंदिशें तो देखिये ! आप हिन्दू के कायल नहीं हैं , तो आप जाति प्रमाण-पत्र मत बनाइये और धर्म के स्थान पर ‘हिन्दू’ न लिख ‘विधर्मी’ लिखिए । हिन्दू मतलब ब्राह्मण नहीं है, ज़नाब । जो आप भड़ास निकालेंगे । प्रतिमा देनेवाले कलाकार ‘कुम्हार’ बैकवर्ड / शूद्र ही हैं , दुर्गा के आकार-प्रकार या महिषासुर के आकार-प्रकार इनकी देन है , जो इनका पेशा है । न कि ये कलाकार ईश – चेतना के लिए ऐसा करते हैं । उन्हें मज़दूरी चाहिए । उसी तरह ‘शंख’ बजाकर कोई मज़दूरी पाते हैं ।
‘ठग’ तो यहाँ सभी हैं । ठग भी एक कलाकारी है । कोई क्यों आपको ठगेगा, आप लालच व लोभवश खुद ठगाते हैं ! ब्राह्मण या कोई इसी भाँति हाथ-सफाई करते हैं कि आपको स्वर्ग जाना है, मोक्ष पाना है । नौकरी पाने, बेटा पाने हम में से 99% इन पूजा-दरगाह में घूमते हैं , वे तो हमें नहीं बुलाते !
2020 के शेष दिवसों की शुभकामना सहित । इसे स्वीकार कीजिये या नहीं, बला आपकी।
आपके कंठहार–
‘……………….’

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.