पर्यावरणलेख

पर्यावरण के दुश्मनों को पहचानिए !

भारत में उपलब्ध प्राचीन लेखों के अनुसार, यह पक्षी जिस भी घर में या उसके आंगन में पाई जाती है, वहाँ सुख-शांति बनी रहती है, किंतु प्रसन्नता सिर्फ पाने ने नहीं, इसे खोने में भी है ! हम विलासी बने और गोरैयों से दूर हो गए । प्राचीन हिन्दू धर्म में ऐसे और भी पक्षी हैं, जिनके धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व हैं । पक्षियों को हिंदू धर्म में देवऔर पितर माना गया है। ऐसी मान्यता है, जिस दिन आकाश में विचरते पक्षी लुप्त हो जाएंगे, उस दिन धरती से मनुष्य भी लुप्त हो जाएगा ! किसी भी पक्षी को मारना, अपने पितरों को ही मारने-जैसा है। भारतकोश में गोरैया को जंतु (Animalia), संघ- कोर्डेटा (Chordata), वर्ग- एवीज (Aves), गण- पैसरीफोर्म्स (Passeriformes), कुल- पैसरेडी (Passeridae), जाति- पैसर (Passer), प्रजाति- डोमेस्टिकस (domesticus), द्विपद नाम- पैसर डोमेस्टिकस (Passer domesticus‌) लिखा गया है। इस पक्षी की मुख्यत: 6 प्रजातियां बताई गई है। जो ऊपर वर्णित है । इसके अतिरिक्त सोमाली, पिंक बैक्ड, लागो, शेली, स्कोट्रा, कुरी, कैप, नार्दन ग्रे हैडॆड, स्वैनसन, स्वाहिल, डॆहर्ट, सुडान गोल्ड, अरैबियन गोल्ड, चेस्टनट इत्यादि नामक गोरैया विभिन्न देशों में पायी जाती है। इनके रंग-रुप, आकार- प्रकार देश-प्रदेश की जलवायु के अनुसार परिवर्तित होते रहे हैं।

यह गल्प आख्यान हो सकती है कि सृष्टि के निर्माण के साथ ही इस धरती बनी हो ! इसके बाद वृक्ष, वन, वायु, पानी, आग, जीव-जंतु, पक्षी-कीटप्राणी भी उत्पन्न हुए । बादल-पानी, नदी-निर्झर, महानद-सागर हुए हो ! एक भाग धरती और शेष तीन भाग पानी से भर दिए हो, ताकि प्राणी जीवित रह सके ! …. और अंत में धरती को श्रृंगार रस में भिंगोने के बाद उन्होंने मानव की उत्पत्ति हुई ! सृष्टि में मानव को बुद्धि से आच्छादित की गई और तभी से सृष्टिकर्त्ता ‘मानव’ के प्रति सशंकित हो गए! सृष्टिकर्त्ता ने निर्माण कार्य छोड़ दिया, जब से मनुष्य के द्वारा निर्मित हर चीज कितना गहरा असर जन-जीवन पर डाल रही है ! मनुष्य के द्वारा निर्मित हर चीज कितना गहरा असर जन-जीवन पर डाल रही है । कई पशु-पक्षी विलुप्त हो गए । छोटी चिड़िया गोरैया भी उनमें से एक है। अमर उजाला के लिए लेखक श्री अमित शर्मा लिखते हैं कि हमारे बचपन की दोस्त गौरैया अब हमारे घर नहीं आती। अपना घर बनाने की चाहत में हमने उनसे उनका प्राकृतिक आवास और भोजन छीन लिया है। यही वजह है कि गौरैया अब हमसे लगातार दूर होती जा रही है और कई क्षेत्रों में तो अब ये देखने को भी नहीं मिलती ! पक्षीप्रेमी अर्जुन जी के हवाले कहना है कि मोबाइल टावर्स की तरंगें नहीं है समस्या। दिल्ली के चांदनी चौक के रहने वाले अर्जुन जी ने बताया कि अगर हम अपने घरों में कृत्रिम रूप से उनके लिए घोंसले बना दें, तो गौरैया को अंडे देने की जगह मिल जाएगी। अंडे देने का उनका समय अगस्त से नवंबर के बीच होता है। ऐसे में अगर हम उन्हें ‘जगह’ उपलब्ध करवा दें, तो वे हमारे पास वापस आ सकती हैं। उन्होंने बताया कि वे दिल्ली के हजारों घरों में अब तक घोंसले बना चुके हैं और इन घरों में गौरैयों को वापस आते हुए और अपने अंडों को पालते हुए देखा है। उनके आवास के लिए बॉक्स कुछ बड़े साइज में होनी चाहिए। वे बॉक्स में कुछ कॉटन और सूखी पत्तियां रख देते हैं। इस बॉक्स को जमीन से आठ से दस फीट की ऊंचाई पर रख देते हैं जहां ये सुरक्षित रह सकें। इन घोंसलों पर पानी नहीं पड़ना चाहिए। इनके आसपास थोड़ी दूर पर पीने के लिए पानी का एक पात्र भी रख देते हैं और कुछ दूर पर उनके खाने की चीजें जैसे उबले चावल, पोहा या रोटी के टुकड़े बिखेरने वाले अंदाज में रख दी जानी चाहिए। इससे गौरैयों को यह उनका प्राकृतिक आवास जैसा महसूस होता है और वे इनमें वापस आ जाती हैं।

छोटे-छोटे दानोंवाले अनाजों की खेती न होने से गोरैया के आहार में कमी आयी है, जिससे गौरैया को खाने के लिए चीजें नहीं मिल रही हैं। गोरैया कीड़ों को भी खाना पसंद करती है, लेकिन शहरों में ढकी नालियों के चलते अब गोरैयों के लिए कीड़ों की उपलब्धता में भी भारी कमी आई है, जिससे उनका जीवन असहज हुआ है। इस पक्षी की सैकड़ों प्रजातियां दुनिया के हर कोने में पाई जाती हैं, लेकिन प्राकृतिक स्थलों के बदलाव के कारण अब इनकी संख्या में तेजी से कमी हो रही है । एक रपट के अनुसार, सिर्फ गोरैया ही नहीं, वरन दुनिया की हर 8वीं चिड़िया की प्रजाति पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। अमेरिकी संस्था ‘कार्नेल लैब’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1966 की संख्या के आधार पर गोरैया की संख्या में 84% तक की कमी आई है। ब्रिटेन में गोरैया की संख्या अब आधी से भी कम रह गई है। इस पर लोगों का ध्यान आकर्षित करने के लिए ही प्रतिवर्ष 20 मार्च को विश्व गोरैया दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार ने 2010 में गोरैया पर डाकटिकट जारी किया और दिल्ली सरकार की तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने वर्ष 2012 में गौरैया को दिल्ली का राज्य पक्षी घोषित की। हमें युद्धस्तर पर इस मासूम पक्षी के संरक्षण के लिए अतुलनीय प्रयास करने ही पड़ेंगे, तभी हमारी पीढ़ी इसे देख पाएंगी!

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.