पर्यावरणलेखविज्ञान

भारत में पक्षियों के अध्ययनशास्त्री

भारत के प्रसिद्ध पक्षी वैज्ञानिक मो. सलीम अली ने भी इस पर बेइंतहा कार्य किये हैं, वहीं लखनऊ की लेखिका श्रीमती संतोषी दास लिखती हैं कि गौरैया की चूं चूं अब चंद घरों में ही सिमट कर रह गई है। एक समय था जब उनकी आवाज़ सुबह और शाम को आंगन में सुनाई पड़ती थी। मगर आज के परिवेश में आये बदलाव के कारण वह शहर से दूर होती गई। गांव में भी उनकी संख्या कम हो रही है। आधुनिक घरों में गोरैया के रहने के लिए कोई जगह नहीं है । विदित हो, घर पर महिलाएं अब न तो गेहूं सुखाती हैं, न ही धान कूटती-पीसती हैं, जिससे उन्हें छत पर खाना नहीं मिल पाती है। घरों में टाइल्स का इस्तेमाल ज्यादा होने लगा है, जिससे गोरैया को फुदकने में परेशानी हो रही है । पक्षी विज्ञानी श्री हेमंत सिंह के अनुसार, गोरैया की आबादी में 60% से 80% तक की कमी आई है। अगर इसके संरक्षण के उचित प्रयास नहीं किए गए, तो हो सकता है कि गोरैया इतिहास की चीज बन जाए और भविष्य की पीढ़ियों को यह देखने को ही न मिले। लखनऊ विश्वविद्यालय में जंतु विज्ञान विभाग की प्रो. अमिता कन्नौजिया और उनके स्टूडेंट्स ने 8 जगहों पर गौरेया की संख्या जानने के लिए गणना की। इसमें चौंकाने वाला तथ्य यह सामने आया कि जो ग्रामीण क्षेत्र थे, वहां पर गौरेया की संख्या बेहद कम पाई गई, शहरी इलाके के बनिस्पत। इसका सबसे बड़ा कारण यह माना गया कि गांव अब आधुनिक हो रहे हैं, जिससे वहाँ भी गौरेये पर संकट मंडराने लगा है। लखनऊ में 2018 में इस सर्वेक्षण के समय सिर्फ 2,767 गोरैये पाए गए। लखनऊ में सर्वेक्षण हेतु 8 स्थान रहे, यथा- इटौंजा, बीकेटी, मोहान, अमेठी, गुसाईगंज, काकोरी, मलिहाबाद और डालीगंज। यह काउंटिंग उन्होंने वैज्ञानिक मैथेड प्वाइंट काउंटिंग और लाइन ट्रासिट मैथेड से किया। इसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि गांव में गोरैया की संख्या कम थी। इस गणना से यह पता चला कि इटौंजा में सबसे कम गौरेया थी। वहां पर गणना में गोरैया की संख्या 17 पाई गई। वहीं लखनऊ शहर के डालीगंज में 927 गौरैया पाए गए। प्रो. अमिता ने बताया कि यह सर्वे गोरैया पक्षी पर Ph. D. कर रहे उनके स्टूडेंट्स द्वारा किए गए हैं। इस सर्वे में यह पता चला है कि लखनऊ में कुल 2,767 गौरैया रहे हैं, यथा- डालीगंज में 927, इटौंजा में 17, बीकेटी में 200, मोहाना में 100, अमेठी में 100, गुसाईगंज में 50, मलिहाबाद में 150 रहे।  ज्ञात हो, यह कौतूहल और समर्पण की बात है कि उत्तरप्रदेश के आलमबाग निवासी श्री सुरेंद्र प्रसाद पाण्डेय ने तो अपना पूरा घर गौरैया के नाम कर दिया है, जिन्होंने अपने बगीचे में 15 टाइप्स के मानवनिर्मित घोंसले भी बनाए, जो दाना-पानी युक्त है।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.