लघुकथा

भीगी पलकें

कैलाश अन्कल, कल रात को शादी में नहीं आए , प्रतीक्षा करती रही। फेसबुक
वाट्सएप पर कार्ड भेजा तो था। पूजा बेटी फेसबुक पर लाइक कर दिया था।
वाट्सएप पर भी  2000 ₹ के नोट की फोटो भेज कर उत्तर दे तो दिया था। स्वयं
घर पर कार्ड देने के लिये आना चाहिए था। तब अवश्य आशीर्वाद देने पहुँचता।
सारी अन्कल। फिर अभी विदा के समय कैसे ? भीगी पलकों से अन्कल बोले – इतने
वर्षों से तुम से बेटी का प्यार का रिश्ता कायम है। मन का भावुक होने के
कारण स्वयं को नहीं रोक पाया। ससुराल में खुश रहना जया बेटी। विदाई के
समय अन्कल एवं जया बेटी दोनों ही बस रो रहे थे एवं अपनी अपनी भीगी पलकों
से बस रो रहे थे रो रहे थे।
— दिलीप भाटिया

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी