कविता

एक ओंकार

ये देवालयों से आने वाली
आरती की आवाजें
मस्जिदों की अजाने
गुरुद्वारों की अरदास
जो कानों में अा रही हैं
ध्यान से सुनो
कुछ कह रही हैं
चिल्ला चिल्ला के
कह रही हैं
सुनो मेरी आवाज
मेरी आवाज़ में कोई नहीं फर्क
सब आवाज़ों में गूंज रहा है
एक ही शब्द
एक ही नाद
ओंकार ओंकार ओंकार
मैं ओंकार हूं
मैं ओंकार हूं
सुनने में तुम्हारे है फर्क
मैं ओंकार हूं
मैं तो सत सनातन हूं
चारों दिशाओं में
गुंजनमान हूं
मैं मंदिर की आरती
में हूं
गुरु की अरदास में हूं
मस्जिद की अजान में हूं
तुम उसे चाहे राम सुनो
चाहे अल्लाह
चाहे जीसस
या
गुरु बानी
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020