लघुकथा

परख

चम्पा का विवाह बड़ी धूमधाम से हो गया था।सभी उसकी किस्मत पर हैरानी कर रहे थे।क्या किस्मत पाई है?इतना सुन्दर,पढ़ा-लिखा लड़का मिला है।किस्मत का खेल है सारा।वह भी अपनी किस्मत की लकीरों पर खुश थी।
दिनेश,जैसा लड़का उसे पति के रूप में मिला था।उसने कभी सपनों में भी नहीं सोचा था कि उसकी विकलांगता के बावजूद उसे इतना अच्छा जीवन साथी मिल जाएगा।
उसने भी नौकरी पाने के लिए रात-दिन एक कर दिया था।उसकी मेहनत रंग लाई थी।शादी से पहले ही उसने ऊँचा पद प्राप्त कर लिया था।सभी उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे।
दिनेश, उसे खूब प्यार करता था।वह भी उस पर बहुत विश्वास करती थी।वह जीवन में हर काम बहुत परख कर करती थी।दिनेश,हमेशा नए-नए काम-धंधे में पैसा लगता और असफलता का रोना उसके सामने रो देता।वह उसे और पैसे दे देती।वह हर बार उससे मोटी रकम ले लेता। वह घर पर यहीं दिखावा करता कि उसकी तो किस्मत ही खराब है।
आज उसने चम्पा के सामने लोन के कागज साइन करने के लिए रख दिए तो वह पूरी तरह हैरान रह गई।आप मेरे नाम पर इतना बड़ा लोन क्यों ले रहे हो?दिनेश भड़क उठा। क्या लगा रखा है तेरा,मेरा।चलो चुपचाप साइन कर दो।वह उसके इस व्यवहार से हक्की-बक्की रह गई।जब उसने साइन करने से साफ मना कर दिया तो वह अपने असली रूप में आ गया।मैंने तुम से शादी रुपयों के लिए कि थी,वरना तुम जैसी से कौन शादी करता?चली जाओ यहाँ से, मैं तुम्हारी शक्ल नहीं देखना चाहता।क्या तुम्हारा प्यार?हा सब झूठ था।वह आँखों में आँसू लिए घर से बाहर निकल गई।वह अब पछता रही थी कि वह उसके सुन्दर चेहरे के पीछे के शैतानी इरादों को परख क्यों नहीं सकी?वह महसूस कर रही थी कि आज तक लोग हम जैसो की भावनाओं से ही खेलते आए हैं।वह नम आँखों से ऑटो में बैठ गई,अपनी छड़ी लेकर।चलो भाई।
राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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