कविता

कविता – बेटी

मै बेटी हूं कोई पशु नही ,
मेरा अस्तित्व इस दुनिया के हर कोने मै है ।
बेटी को कोख में नष्ट करने वाले सुन लो अब तुम्हारा अस्तित्व भी खोने को है।
अगर वेदो ,पुराणो मे ,शास्त्रो में मेरा जिक्र न होता तो तुम पूजा किनकी करते ।
नदी, प्रकृति, सरिता पृथ्वी ,अखंड ब्रह्माण्ड में केवल अपने पुरुषत्व का ढिंढोरा पीटते।

मै बोली,गीत संगीत ,प्रेम ,आस्था से रची हूँ ।
मै अग्नि, पानी, वायु और संस्कार मे बसी हूँ ।

फिर मुझसे ही दुनिया को जीने वाले प्राणी मुझे कमजोर बनाते हैं ।
क्यूँ हमें नही समझना चाहते हैं,क्यूँ नही हमें इस धरती पर आने देते हैं।

हमें जीने दो और हमे भी शिक्षित करो।
विश्वास ना करो हम पर कोई बात नही,
पर बस हमसे इस दुनिया में जीने का अधिकार मत छीनो।
हमारा अधिकार मत छीनो ।

सोच लो नारी हर कार्य में अपना हुनर दिखाती है।
नारी को तुच्छ समझने वाले फिर तुम्हारी वासना नारी के आगे पीछे क्युं मंडराती है।

जब सृष्टि की रचना का विनाश कर डालोगे,
और बेटियों को कोख में ही कुचल डालोगे,
तो विनाश खुद के लिये तैयार हो जाओ।
एसा न हो तुम्हारा अस्तित्व केवल एक जीव को जन्म देने में ही काम आने लगे।
हे पुरुष अपना पुरुषत्व बचा लो।
और अपने अहंकार को त्याग कर नारी की महत्ता को अपना लो

तभी तुम्हारा भी अस्तित्व बचा रहेगा
वरना एसा एक दिन होगा जब तुम खुद को ही कमजोर पाओगे ।
और तुम्हारा वर्चस्व केवल जीवों को जन्म देकर खत्म हो जाएगा।

वीणा चौबे

हरदा जिला हरदा म.प्र.