कविता

सुशांत तेरी याद में

सपने संजोये हम बालीवुड में आते हैं ,
दर – दर के ठोकरे खाते – खाते कोई मुकाम हम पाते हैं।
अपनी मेहनत का लोहा हम मनवाते है ,
फिर एक दिन हम शिकारियों के शिकार हो जाते हैं ।
बड़ा दर्द होता है हमें इन नेपोटिज्म की गोलियों से,
हम तेरे हिस्से का तो कुछ नहीं मांगते हैं ।
फिर क्यूँ आखिर क्यूँ तूझे कष्ट होता है मेरे सफलता की तालियों से।
राजनीति में भाई-भतीजावाद देखा सुना था।
तिनका – तिनका मेहनत कर अपना मुकाम हमने बुना था।
तूने तोड़ा मेरा आशियाना,
मैंने तो नहीं छीना था तेरा एक भी दाना।
एक बात तू भी सुन ले ए मेरे तथाकथित सितारे,
आज तू मुझे चाहे जितना भी सता ले।
एक दिन तू भी मिल जाएगा मिट्टी में ,
लूट जाएगा तेरा ये चमन ये गुलशन और ये बहारें।
सुशांत भले ही हो गया है अब शांत,
मगर नहीं है शांत बिहार प्रांत।
आज नहीं तो कल मिलेगा उसे इंसाफ,
यहाँ न कोई काम आएगा तेरा बाप।
तेरे चमक के पीछे है तेरा बाप
तू डर ऊपर वाले से और कांप।
कोई काम न आऐंगे आगे तेरे सहपाठी,
जब पड़ेंगे तेरे पर ऊपर वाले की लाठी।
— मृदुल शरण अभिनेता मुंबई