लघुकथा

नया फूल

चेतन,बगीचे में खिले फूलों को देखकर खुशी से चहक उठा।फूलों की सुगन्ध, कोमलता उसके मन में अनगिनत सपने पैदा कर रही थी।एक-एक फूल उसे कोमल बच्चे की तरह लग रहा था।लाल,पीले और सफेद रंग के फूल।वह मन ही मन प्रकृति की इस अदभुत आभा पर मुग्ध हो रहा था।
उसे एकाएक दीपा की याद आ गई, वह अतीत के कुछ उलझें सवालों के जवाब ढूढने में खो गया।
दीपा को शादी के दस साल बाद भी सन्तान सुख नहीं मिला था।दोनो पूरी तरह से स्वस्थ थे।डॉक्टर भी पूरी कोशिश कर चुके थे।पर कोई रास्ता नहीं निकल पा रहा था।दीपा खुद को दोष देती थी।लाख समझने पर भी वह अनाथालय से बच्चा गोद लेने को तैयार नहीं थी।उसका तर्क था अपना खून अपना ही होता है, पराया खून कभी अपना नही हो सकता।पता नहीं बड़ा होकर वह किस तरह का निकलेगा,वह हमें घर से बाहर निकाल देगा?
उसे बहुत समझने पर भी कोई नतीजा नहीं निकल सका।वह इतनी संकीर्ण सोच क्यों रखती थी?हवा के झोंके ने एक बार फिर चेतन का ध्यान हिलते लाल गुलाबों की तरफ खिंच लिया था।वह मन ही मन ठान चुका था कि वह दीपा से आज फिर बात करेगा।वह खुद को तैयार कर रहा था इसके लिए।
दीपा:चेतन-आज आप बहुत देर तक बगीचे में बैठे रहे?
चेतन-हाँ, हमारे बगीचे में बहुत सुंदर फूल खिले हुए हैं, उनकी सुंदरता देखकर मेरा मन भी खिल उठता है।
चेतन, ये सब मेरी परवरिश का नतीजा है।मैं सुबह-शाम इनकी देखभाल में लगी रहती हूँ।तभी तो ये महकते रहते हैं।
हाँ, दीपा यहीं तो मैं कहना चाहता हूँ।तुम्हारी परवरिश के कारण, जब ये फूल महक सकते हैं तो….क्या हमें अनाथालय से एक सुन्दर फूल गोद नहीं ले लेना चाहिए?मुझें पूरा विश्वास है, तुम्हारी देख-रेख में वह भी गुलाब की तरह महक उठेगा।दीपा का मन भी इस विश्वास से भर गया कि वह नए फूल की परवरिश के लिए तैयार थी।चेतन अपने आँगन में आने वाले मेहमान के लिए बहुत खुश था।
दीपा:चेतन- जल्दी करो,अनाथालय ने देर हो जाएगी।आज मैं अपने आँगन में नया फूल लगाऊँगी।वह आज दीपा के चेहरे को भी गुलाब की तरह महकता देख रहा था।
— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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