कविता

बेटा मेरा नादान बहुत है।

बेटा मेरा मुझसे भी बड़ा है, इस बात का मुझे अभिमान बहुत है।

कमाता है विदेश में करोड़ों, वहां उसकी आन बान बहुत है।

भेजता है मुझे महीने में हजारों, दोस्तों में उसका सम्मान बहुत है।

पहुंचा दिया वृद्ध आश्रम मुझे, उसके मुझ पर एहसान बहुत हैं ।

मैं ठहरा बूढा लाचार, उसके घर आते मेहमान बहुत हैं।

बेटा मेरा नादान बहुत है।

वृद्ध आश्रम की पेशकश करके मैनें उसकी मुश्किल आसान कर दी।

मेरे यहाँ आने से उसे आराम बहुत है ।

हारकर शतरंज की बाज़ी, मैं हमेशा मुस्कुराया,
उस जीत को वो आज तक समझ ना पाया।

अब वह चैन से सोता है, घर में ऐश-ओ-आराम का सामान बहुत  है।

बेटा मेरा नादान बहुत है।

भले ही मेरे नाम से वो ना पहचाना जाए,

वैसे शहर में उसकी पहचान बहुत है ।

उसके फोन आने का, रहता मुझको इन्तजार बहुत है।

फोन पर पूछ लेता है कैसे हो पापा?

क्योंकि यह काम आसान बहुत है।

मैं कहता हूँ अपने बच्चों की फ़िक्र कर,

मुझे तो यहां आराम बहुत है।

बेटा मेरा नादान बहुत है।

कितनी फ़िक्र है उसे मेरी,

इस बात का उसे गुमान बहुत है।

वो भी क्या करे बेचारा,

उसकी बीवी की डिमांड बहुत है।

उसका बेटा उसे ऐश-ओ-आराम से रखे,

ऐसा उसे अरमान बहुत है।

मुझे नाज है अपने बेटे पर,

करता मेरा गुणगान बहुत है।

बेटा मेरा नादान बहुत है।

 

रविन्दर  सूदन 

ravisudan@yahoo.com

रविन्दर सूदन

शिक्षा : जबलपुर विश्वविद्यालय से एम् एस-सी । रक्षा मंत्रालय संस्थान जबलपुर में २८ वर्षों तक विभिन्न पदों पर कार्य किया । वर्तमान में रिटायर्ड जीवन जी रहा हूँ ।