सामाजिक

मोर्चे पर महिलाओं के बढ़ते कदम

  भारत में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन और कमांडिंग ऑफिसर के स्तर तक उठने के समान अवसर के लिए रास्ता साफ कर दिया तो उधर पाकिस्तान में पहली महिला जनरल की खबर सुर्ख़ियों में है. दुनिया में आज हर क्षेत्र में महिलायें आगे बढ़ रही है और ऐतिहासिक उपलब्धियां हासिल कर रही हैं. भारतीय इतिहास नारी की त्याग-तपस्या की गाथाओं से भरा पड़ा है। किसी युग में महिलाएं पुरुषों से कमतर नहीं रहीं। वैदिक युग में महिलाएं युद्ध में भी भाग लेती थीं।

हालांकि, मध्यकाल के पुरुषवादी समाज ने नारी को कुंठित मर्यादाओं के नाम पर चार-दीवारी में कैद कर रखने में कोई कसर नहीं छोडी, परन्तु तब भी महिलाओं ने माता जीजाबाई और रानी दुर्गावती की तरह न केवल शास्त्रों से, अपितु शस्त्रों का वरण कर राष्ट्र की एकता और संप्रभुता की रक्षा की। वर्तमान में केवल भारतीय वायुसेना ही लड़ाकू पायलट के रूप में महिलाओं को लड़ाकू भूमिका में शामिल करती है। वायुसेना में 13.09% महिला अधिकारी हैं, जो तीनों सेनाओं में सबसे अधिक हैं। आर्मी में 3.80% महिला अधिकारी हैं, जबकि नौसेना में 6% महिला अधिकारी हैं।

परन्तु अपने विशिष्ट शारीरिक विन्यास के कारण पुरुषों से आमतौर पर कमजोर समझी जाने वाली महिलाओं को ‘प्रतिरक्षा सेवाओं’ में इतनी आसानी से स्वीकृत नहीं किया गया। भारत में 1992 में केवल पांच वर्षों की अवधि के लिए महिला अधिकारियों की भर्ती  शुरू हुई, अंत में इसे बढ़ाकर 10 और बाद के अवधि में 14 वर्ष कर दिया गया। 2016 में तीन महिलाओं को फायटर पायलट के रूप में तैनात किया गया था। इनकी नियुक्ति पायलट प्रोजेक्ट के रूप में की गई थी। शुरू में केवल चिकित्सा सेवाओं तक सीमित भूमिका में रही सैन्य अफसर महिलाओं को  2019 में सरकार ने उन सभी दस शाखाओं में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का फैसला किया जहां उन्हें शॉर्ट सर्विस कमीशन  के लिए शामिल किया गया है – सिग्नल, इंजीनियर, आर्मी एविएशन, आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर, आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डिनेंस कोर और इंटेलिजेंस।

आज महिला अधिकारी भारतीय सशस्त्र बलों की गर्व और आवश्यक सदस्य हैं । अवनी चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह अब भारतीय वायुसेना के लड़ाकू स्क्वाड्रन का हिस्सा हैं। कहीं नेवी में पायलट और कहीं ऑब्जर्वर के तौर पर महिलाएं समुद्री टोही विमान में सवार हैं, तो कहीं आसमान से लड़ाकू की भूमिका में  है।भारत  सरकार सेना में “स्त्री  शक्ति” (महिला शक्ति) को मजबूत करने के लिए प्रतिबद्ध है।

हालाँकि, महिला अधिकारियों को उनके पुरुष सहयोगियों के साथ लाने में चुनौतियाँ हैं
महिला अधिकारियों को अब लड़ाकू जेट के पायलट और युद्धपोतों पर तो तैनात किया जाता है, लेकिन सेना में महिला अधिकारियों को सेना के पैदल सेना और बख्तरबंद डिवीजनों में, दुश्मन और यातना द्वारा पकड़े जाने के डर से शामिल नहीं किया जाता है।अमेरिका अपने महिला सैनिकों को युद्ध के मोर्चे पर भेजता है और वे वहां मारी भी जाती हैं और युद्धबंदी भी बनाई जाती हैं. इससे न तो देश की, न ही अमेरिकी औरतों की इज्जत खराब होती है.

सोचने की बात यह है की जब अमेरीकी फ़ौज की महिलाएं इराक़ और अफग़ानिस्तान में लड़ सकती हैं, तो भारतीय महिलाएँ क्यों नहीं? अगर पैरामिलिट्री फोर्सेज व पुलिस में महिलाओं की भागेदारी हो सकती है, तो सेना में क्यों नहीं? भारत में महिलाओं को मोर्चे पर न भेजने का एक बड़ा तर्क ये होता है कि अगर दुश्मन देश में भारतीय महिला सैनिकों को बंदी बना लिया तो क्या होगा? एक भ्रान्ति ये भी कि पुरुष सैनिक, जो मुख्यतः ग्रामीण पृष्ठभूमि से आते हैं, एक महिला कमांडर को “स्वीकार” करने के लिए तैयार नहीं होते हैं।

महिला अधिकारियों के शरीर विज्ञान, मातृत्व और शारीरिक विशेषताओं पर चिंताएँ उठाई जाती हैं। महिला अधिकारियों और उनके पुरुषों के समकक्षों के लिए सेवा की शर्तों में अंतर उनके पक्ष में माना जाता है।महिला अधिकारियों को भर्ती के दौरान शारीरिक दक्षता परीक्षण मानकों में रियायतें हैं। महिला अधिकारी नियुक्तियों में  स्वच्छता, संवेदनशीलता और गोपनीयता के मुद्दों पर अतिरिक्त विचार करने की आवश्यकता होती है। इसके लिए पहले सामाजिक स्तर पर व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता होगी.

दुनिया और भारत के इतिहास में महिला योद्धाओं का नाम बड़े गर्व से लिया जाता है . जॉन ऑफ आर्क से लेकर रानी लक्ष्मीबाई, चित्तूर की रानी चेनम्मा, चांद बीवी, गोंड रानी दुर्गावती, झलकारी बाई, उदादेवी पासी जैसी योद्धाओं ने अपना नाम  पुरुष योद्धाओं से भी बढ़कर कमाया है. इनके साथ कभी ये सवाल नहीं आया कि वे युद्ध क्षेत्र में कपड़े कैसे बदलती थीं या कि वे योद्धा होने के दौरान गर्भवती हो जातींतो क्या होता ?  आखिर ऐसा क्या है कि जो बात पहले हो सकती थी, वह आज नहीं हो पा रही है? कहीं हमारी घटिया मानसिकता तो महिलाओंकी भूमिका को कमजोर करने पर नहीं तुली??

भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका को कैसे बढ़ाया जा सकता है इस पर  अध्ययन किये जाने संतुलित सोचने की की ज़रूरत है। इसमें कोई संदेह नहीं कि महिलाएँ सेना में बहुत से कार्य बेहतर ढंग से कर रही हैं लेकिन हमें यह भी देखने की ज़रूरत है कि इनके कार्यक्षेत्र को किस प्रकार बढ़ाया जा सकता है। महिला अधिकारियों को दी जाने वाली कुछ रियायतें वापस ली जा सकती हैं, कमांड के लिए चयन अधिकारी की गोपनीय रिपोर्टों और बंद पदोन्नति बोर्ड के माध्यम से किया जाना चाहिए, दोनों लिंगों के लिए सामान्य, और प्रोफ़ाइल के नाम और लिंग चयन बोर्ड से छिपाए जाने चाहिए। जेंडर इक्वेलिटी ’समय की सामाजिक जरूरत है और यह महिला और पुरुष दोनों अधिकारियों पर लागू होता है और सशस्त्र बलों की  प्रभावशीलता से समझौता किए बिना संतुलित निर्णय की भावना से इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए। महिलाओं की भागीदारी सेना को और ज़्यादा प्रभावी बना सकती है.

आज महिलाएँ पूरी दुनिया में सैन्य क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।  अगर कोई महिला अपनी मर्जी से, तमाम जोखिम को जानकर, सेना में आती है, तो किसी को भी उसका पिता बनकर उसके लिए फैसला करने का अधिकार नहीं है. अगर महिलाएं तमाम जोखिम को समझकर और तमाम दिक्कतों का सामना करने के लिए तैयार होकर सेना में शामिल होती हैं, तो सेना में हर तरह की भूमिकाएं उनके लिए खोल देनी चाहिए. फ़ौज और मिलिट्री एक एकीकृत संस्था के रूप में काम करती है और महिलाओं व पुरुषों के साथ काम करने से राह आसान ही होगी. जब जवान के स्तर पर महिलाएँ शामिल होंगी तभी पुरुष जवानों का महिला अफ़सर पर विश्वास मज़बूत होगा और सेना सशक्त हो कर उभरेगी.

डॉ सत्यवान सौरभ

डॉ. सत्यवान सौरभ

✍ सत्यवान सौरभ, जन्म वर्ष- 1989 सम्प्रति: वेटरनरी इंस्पेक्टर, हरियाणा सरकार ईमेल: satywanverma333@gmail.com सम्पर्क: परी वाटिका, कौशल्या भवन , बड़वा (सिवानी) भिवानी, हरियाणा – 127045 मोबाइल :9466526148,01255281381 *अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओँ में समान्तर लेखन....जन्म वर्ष- 1989 प्रकाशित पुस्तकें: यादें 2005 काव्य संग्रह ( मात्र 16 साल की उम्र में कक्षा 11th में पढ़ते हुए लिखा ), तितली है खामोश दोहा संग्रह प्रकाशनाधीन प्रकाशन- देश-विदेश की एक हज़ार से ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशन ! प्रसारण: आकाशवाणी हिसार, रोहतक एवं कुरुक्षेत्र से , दूरदर्शन हिसार, चंडीगढ़ एवं जनता टीवी हरियाणा से समय-समय पर संपादन: प्रयास पाक्षिक सम्मान/ अवार्ड: 1 सर्वश्रेष्ठ निबंध लेखन पुरस्कार हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी 2004 2 हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड काव्य प्रतियोगिता प्रोत्साहन पुरस्कार 2005 3 अखिल भारतीय प्रजापति सभा पुरस्कार नागौर राजस्थान 2006 4 प्रेरणा पुरस्कार हिसार हरियाणा 2006 5 साहित्य साधक इलाहाबाद उत्तर प्रदेश 2007 6 राष्ट्र भाषा रत्न कप्तानगंज उत्तरप्रदेश 2008 7 अखिल भारतीय साहित्य परिषद पुरस्कार भिवानी हरियाणा 2015 8 आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार 2019 9 इंटरनेशनल जर्नल ऑफ़ रिसर्च एंड रिव्यु में शोध आलेख प्रकाशित, डॉ कुसुम जैन ने सौरभ के लिखे ग्राम्य संस्कृति के आलेखों को बनाया आधार 2020 10 पिछले 20 सालों से सामाजिक कार्यों और जागरूकता से जुडी कई संस्थाओं और संगठनों में अलग-अलग पदों पर सेवा रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, दिल्ली यूनिवर्सिटी, कवि,स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार, (मो.) 9466526148 (वार्ता) (मो.) 7015375570 (वार्ता+वाट्स एप) 333,Pari Vatika, Kaushalya Bhawan, Barwa, Hisar-Bhiwani (Haryana)-127045 Contact- 9466526148, 01255281381 facebook - https://www.facebook.com/saty.verma333 twitter- https://twitter.com/SatyawanSaurabh