कविता

आँसू हूँ

मैं हर एक परिस्थिति में आँखों से छलकता हूँ
मनुष्य की भावनाओं को मैं बखूबी समझता हूँ
मनुष्य की भावनाओं का रूप बदलकर मैं आँखों में झलकता हूँ
सामने वाले को समझाने की मैं हर बार नाकाम कोशिश करता हूँ
आँसू हूँ जनाब मुझे कोई भी पसंद नहीं करता है
हर बार हर कोई मेरा गलत अंदाजा ही लगाता है
कभी शब्द कभी भावना बनकर आँखों से बहता हूँ
बनकर पानी का एक कतरा दिल की बात कहता हूँ
दु:खों में निकलना मेरा धर्म है,
लेकिन ख़ुशी के मौके पर ख़ुद पर नियंत्रण नहीं कर पाता हूँ
सुना है लोगों के द्वारा मैं सबसे महँगा लिक्विड कहलाता हूँ
यहाँ किसी के लिए किसी की आँखो  से निकलना मेरे लिए गर्व की बात है
पर किसी की वजह से किसी की आँखों से निकलना मेरे लिए अभिशाप है
अरे! कभी परिस्थितियाँ इतनी बढ़ जाती है कि बस आँखों के अंदर समा जाता हूँ
तो कभी किसी परिस्थिति में मैं सौ बूँद लहू का एक बूँद बनकर छलक जाता हूँ
कभी ख़ुशी कभी ग़म कभी वेदना कभी संवेदना बन आँखों को नम कर जाता हूँ
अरे! मैं तो आँसू हूँ जनाब बस हर एक परिस्थिति में आँखों से छलक ही जाता हूँ
आँसू हूँ जनाब हर बार हर किसी को समझा नहीं पाता हूँ
हूँ तो मैं बहुत कुछ बस यहाँ अभागा आँसू ही कहलाता हूँ।
==  प्रफुल्ल सिंह “बेचैन कलम”

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार लखनऊ (उत्तर प्रदेश) व्हाट्सएप - 8564873029 मेल :- prafulsingh90@gmail.com