कविता

विलक्षण भानु

अपूर्व,अनुपम हे! दिवाकर,
प्रकाश मुढिंत जीवन को देकर,
मानवता का मान बढा़कर,
हे! विलक्षण भानु भास्कर।।
अर्पित कर यह जीवन सारा,
घूम रहा है मुक्त गगन में,
करता उपकार नीत मनुज का,
अपूर्व अनुपम हे! दिवाकर।।
मिटाकर यह रजनीचर को,
करता श्रृंगारित इस धरती को,
देता है, प्रकाश मनुज को,
अपूर्व अनुपम हे! दिवाकर।।
परोपकार में प्रवृत्त रहकर,
करता सफल मानव जीवन,
धन्य हो तुम सौम्य भास्कर,
अपूर्व अनुपम हे! दिवाकर।।
— दिनेश प्रजापत

दिनेश प्रजापत

गांव-मूली, जालौर मोबाइल नं.7231051900